मतदान कर्मी (कहानी)

यह कहानी एक मतदान कर्मी के जीवन में घाटी सच्ची घटना पर आधारित है। मतदान कर्मी किस तरह से वोट कराते हैं जानने के लिए इस कहानी को जरूर पढ़े ।<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>

प्रेम चंद रविदास

6/26/20231 min read

मतदान के ठीक एक दिन पहले सुबह चार बजे से ही बस का हॉर्न बजने लगता है । वोट कर्मी अपना जरूरत के सारे सामान लेकर सुबह चार बजे से ही बस पकड़ने के लिए दौड़ना शुरू कर देते है। जो जितना जल्दी निकलेगा उतना ही जल्दी DCRC पहुंचेगा और उसका काम उतना ही आसान होगा। लेकिन अभिनाश सात बजे घर से निकलता है। जी हां दोस्तो यह कहानी है एक वोट कर्मी की और अभिनाश एक सरकारी करचारी है । उसे वोट के ड्यूटी में जाना है और आंखरी बस पकड़ता है। लगभग सभी कर्मी अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच गए होंगे लेकिन अभी अभिनाश सत्तर किलोमीटर दूर है। अभिनाश के साथ मतदान के दिन क्या होने वाला है चलिए कहानी को पूरा पढ़ते है और जानने की कोशिश करते है । नमस्कार दोस्तो ! में हूं प्रेम चंद रविदास और अपना ब्लॉग में आप सबका स्वागत करता हूं।

दरअसल अभिनाश एक दिन पहले तक इस नतीजे में नही पहुंच पाया था की वह इस बार वोट की ड्यूटी पर जा पायेगा की नही । अभिनाश छे दिन पहले ही बाप बना था । उसकी पत्नी का डिलीवरी डेट मतदान के दिन के आस पास ही था। इसीलिए अभिनाश ने वोट से नाम कटने की अर्जी दे रखी थी। कई बार अभिनाश ने DM ऑफिस के चक्कर काटे लेकिन वह वोट की ड्यूटी से नाम कटाने में असमर्थ रहा। उसने सोच रखा था की कि चाहे जो भी हो वह अपनी पत्नी को डिलीवरी के समय अकेला नही छोड़ेगा। अगर इसके लिए उसे शो कॉस (नोटिस)ही क्यों न मिले । लेकिन उसकी पत्नी का डिलीवरी, डेट के १४ दिन पहले ही हो जाता है और छे दिन अस्पताल में रहने के बाद ठीक मतदान के दो दिन पहले वह घर आ जाता है। हॉस्पिटल में छे दिन तक अपना पत्नी और बच्चा का खयाल रखते रखते वह खुद आराम नही कर पाया था। दूसरे दिन सुबह वोट ड्यूटी में निकालना है यह सोचते हुए रात को एक लंबी और अच्छी नींद लेने के लिए बिस्तर पर चला जाता है। सुबह उठ कर पैकिंग करते करते देर हो जाती है और सात बजे ड्यूटी के लिए रवाना होता है । अभिनाश एक प्रेसिडिंग ऑफिसर है और उसे मतदान के दिन बूथ में एक अहम भूमिका निभानी है । उसका बस ग्यारह बजे DCRC पहुंचता है ।

वह पहुंचते ही अपने सह कर्मियों से मिलता है । उनके सहकर्मी सब नए थे और किसी ने भी पहले वोट की ड्यूटी नही की थी। अभिनास जाते हि देखता है कि लंबी लाइन लगी हुई है और वह सबसे पीछे है । सबसे पहले मोबाइल नंबर रजिस्टर करवाना था । कुछ देर तक कतार में खड़ा रहने के बाद उसका नजर एक बैनर पर पड़ता है जहां लिखा हुआ था की SMS भेज कर भी मोबाइल नंबर रजिस्टर करवा सकते है । वह लाइन में खड़ा रह कर मोबाइल नंबर रजिस्टर करने की कोशिश करता है और देखता है की हो जाता है ।यह बात २०१९ की है दोस्तो ! उस समय व्हाट्स ऐप,इंस्टाग्राम और फेसबुक वागेरा से लोग ज्यादा परिचित नही थे। और मोबाइल से मिलने वाली सुविधा भी बहुत कम ही लोग जानते थे। अभिनाश कतार से निकलता है और पोलिंग मैटेरियल लेने के लिए आलोकेटिंग काउंटर की ओर जाता है । वहां देखता है की कतार में लाइन कम थी । वह अपना टीम के साथ जाकर सारा मटेरियल्स संग्रह करता है । काउंटर पर ऑफिसर ने थोड़ा अजीब अंदाज में कहा " आपका बूथ सीसीटीवी सुपरविजिलेंस में रहेगा "। इस बात को अभिनाश ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उसने कहा " ठीक है"। इसके बाद पोलिंग मटेरियल्स और चेकलिस्ट मिलाते मिलाते दो से ढाई घंटे बीत गए। वह सुबह से कुछ खाया हुआ नही था। वह अपने साथियों से कहता है " मैं थोड़ा खा लेता हूं नही तो काम नही कर पाऊंगा "। उनके साथी सभी खा चुके थे ।

अभिनाश खाने के लिए होटल तलाशता है ।समय बहुत हो चुका था । दो बज गए थे । केवल एक ही जगह खाना मिल रहा था जहां लोगो की बहुत भीड़ लगी हुई थी। सभी बोल रहे थे " मुझे दो ,मुझे दो"। भात स्टॉल में चावल और अंडा करी सिर्फ था । अंडा करी ऐसा की अभिनाश ने पहले कभी नहीं देखा था । अंडा तला हुआ तो था लेकिन झोल मानो जैसे केवल मिर्च पाउडर से बना हुआ था। खाकर पेट खराप होना १००% निश्चित था। लेकिन दूसरा कोई उपाय नहीं था । वहां पर तो पैसा देकर भी खाना मिलना मुस्किल था । क्या करता अभिनाश उसी खाने के लिए टूट पड़ा । बहुत मशक्कत के बाद खाना नसीब हुआ । भूखा रहना भी बर्दास्त के बाहर था और उस खाना को खा लेना भी बेवकूफी था। क्या करता । उस दिन उसने खाना नही खाया बल्कि मुसीबत को निमंत्रण दिया। अब पुलिस टैगिंग करना था। फिर वही बात , पुलिस टैगिंग के लिए कतार में खड़े लोगो को देख उसको ऐसा लग रहा था कि लोग बरसो से किसी चीज का इंतजार कर रहे हो । सिस्टम इतना ढीला था कि कछुआ भी बाजार से तेल लाने जाए तो सायद जल्दी आ जाए लेकिन पुलिस मिलना जैसे उससे भी कठिन हो। तीन बजने को था और पुलिस लेकर ही बूथ में जाना था। अभिनास ने अपने साथियों से कहा की वे जल्दी से गाड़ी की बुकिंग करवा ले तब तक वह पुलिस टैगिंग की कोशिश करता है।उसने देखा कि लाइन थोड़ी भी आगे नहीं बढ़ रही है । उसने पीछे वाले भैया से कहा "भैया थोड़ा देखिएगा,मैं जरा देख के आता हूं की आंखिर इतना देर क्यों लग रहा है"। वह काउंटर के ठीक सामने चला जाता है और देखता है कि एक कर्मी को दो पुलिस देने के लि लगभग २० से २५ मिनट लग रहे थे। उसने सोचा " भाई ! आज तो हो गया, कोई चमत्कार ही जल्दी काम बना सकता है । थोड़ी देर तक वह काउंटर के बगल में ही खड़ा रहा । और भी बहुत सारे लोग काउंटर के बगल में खड़े थे । सभी मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि भगवान कुछ चमत्कार कर दे। अचानक से कुछ पुलिस वाले आए और एक नया काउंटर बना डाले ।अभिनाश जहां पर खड़ा था ठीक वहीं पर नया काउंटर खुल गया। अभिनाश कि जान पर जान आ गई। जितने भी लोग वहा थे अभिनाश से बहुत पहले आए थे। अभिनाश का भाग्य देख सभी को जलन हो रही थी। कुछ लोग तो गुस्सा भी कर रहे थे लेकिन कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था । क्योंकि जो हुआ किस्मत से हुआ। जैसे ही टैगिंग शुरू हुआ अभिनाश का नंबर पहला था। जिस तरह से वोट कर्मी पुलिस लेने के लिए परेशान थे ठीक उसी तरह कांस्टेबल भी परेशान थे की कब उनका नंबर आयेगा और वे वहां से चल देंगे। अभिनाश के किस्मत में लिखी दो पुलिस वाले सामने आए । दोनो पुलिस वाले को देख कर अभिनाश को जोली एलएलबी फिल्म की याद आ गई जब अरशद वर्षी पर खतरा मंडरा रहा था और कोर्ट ने उसकी रक्षा के लिए एक दुबला पतला बूढ़ा कांस्टेबल थमा दिया था जिसे खुद प्रोटेक्शन की जरूरत थी। अभिनाश को मिले पुलिस को देख सभी लोग हंसने लगे । अभिनाश को खुद हंसी आ रही थी । दूसरो को किया बोलता । खेर जो भी हो काम तो जल्दी बना, और वैसे भी केंद्रीय बल तो था ही।

गाड़ी बुकिंग हो चुकी थी । सारे सामान गाड़ी में लोड हो चुके थे। चार भी बज चुके थे। अभिनाश ने सेक्टर ऑफिसर से पूछा कि केंद्रीय बल कहां मिलेगा। ऑफिसर ने कहा " आपलोग जल्दी से निकल जाइए, केंद्रीय बल बूथ में पहुंच चुका है। उस दिन अभिनाश को लग रहा था की किस्मत ने उसको बहुत साथ दिया लेकिन एक बहुत बड़ा झटका अभिनाश का बूथ में इंतजार कर रहा था। अभिनाश और उसके साथी बूथ की ओर चल पड़े।पांच बजे वे बूथ में पहुंचे। बूथ पहुंचते ही अभिनाश ने देखा की उसका बूथ एक आईसीडीएस सेंटर था । बूथ से लगे घर बार और एक दुकान देख अभिनाश को कुछ अजीब लगा । निर्देशों के अनुसार बूथ के १०० मीटर के अंतर्गत भीड़ लगने की कोई जगह नहीं होना चाहिए। लेकिन वहां पर तो बूथ के १० मीटर के घेरे में एक दुकान था । फिर उसने देखा की केंद्रीय बल कहीं नजर नहीं आ रहा था। उसने सेक्टर ऑफिसर को फोन लगाया और पूछ की अभी तक केंद्रीय बल बूथ में क्यों नहीं पहुंचा । सेक्टर ने कहा " थोड़ी देर में पहुंच जायेंगे"। अभिनाश ने अपना आगे की काम शुरू कर दिया। लगभग एक घंटा बीत गाय फिर भी केंद्रीय बल नही पहुंचा । उसने फिर सेक्टर से पूछा " क्या बात है सर! केंद्रीय बल क्यों नही आ रहा है"? सेक्टर ने कहा " रुको मैं पता कर के बताता हूं"। अभिनाश सेक्टर के फोन के इंतजार में काम करने लगा ।DCRC में खाया हुआ अंडा करी ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया। बार बार बाथरूम जाना और काम करना दोनो में समंजस बनाए रखना मुस्किल था। मेडिसिन कीट उसने निकाला और डिसेंट्री की दवाई खा ली। अब अभिनाश को थोड़ी चिंता होने लगी । रात के ८ बज चुके थे केंद्रीय बल का कुछ पता नहीं था । उसी समय दल के कुछ लोग आए । उन्होंने अभिनाश के खाने पीने के इंतजाम के बारे में पूछा । अभिनाश ने कहा "हां ! वो हो गया है स्वयं सहायता समूह के कुछ महिला आए थे वे लोग ही खाना ला देंगे । "पैसों की भी बात हो गई है "उसने कहा। फिर उस दल के नेता ने कहा " सर! कल वोट अच्छा से कराएगा, खाना देने के बहाने लोग अंदर नही आने चाहिए"। अभिनाश ने कहा "हां खाना देने वाले ही आयेंगे ,दूसरे लोग क्यों आयेंगे "। नेता ने कहा "सर पिछले बार यहां पर बहुत गडबड हुआ था ,अगर इस बार भी ऐसा हुआ तो हमलोग चुप नही बैठेंगे "। यह बात सुनकर अभिनाश को सीसीटीवी कैमरा लगने की बात याद आई । अभिनाश ने कहा " कोई गडबड नही होगी सर! आप निश्चित रहिए"। यह सुनकर वह आदमी वहां से चला गया । अभिनाश मन ही मन सोच रहा था की केंद्रीय बल क्यों नही आ रहा है। अभिनाश फिर सेक्टर को फोन लगाया । इस बार सेक्टर ने फोन नही उठाया। अभिनाश को लगा की सायद सेक्टर बहुत व्यस्त होगा इसीलिए फोन नही उठाया। उसने फिर फोन लगाया लेकिन इस बार भी सेक्टर ने फोन नही उठाया। अभिनाश की चिंता बढ़ रही थी। सिर्फ दो पुलिस वाले और वो भी बूढ़े । ऊपर से चारो तरफ घर बार । दुकान भी १० मीटर की दूरी पर लगा हुआ। फिर उस दल के नेता की बात। उसे लग रहा था की कुछ गडबड होने वाला है। उसे लग रहा था की उसे इलेक्शन कमिशन को मैसेज करना चाहिए।लेकिन उसने सेक्टर के फोन का इंतजार करना ठीक समझा।"अगर ज्यादा देर हो जायेगी तब वो मैसेज करेगा" उसने सोचा । फिर नौ बजे उसे सेक्टर का फोन आया । सेक्टर ने कहा " सर! आपके बूथ में केंद्रीय बल नही जायेगा , आपको वैसे ही वोट कराना पड़ेगा" । अभिनाश को बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने पूछा "क्यों"। सेक्टर ने कहा "ऊपर से ऑर्डर है "। अभिनाश ने कहा "आप मजाक कर रहे है , लोग यहां पर तरह तरह के बातें कर रहे है, बूथ सेंसिटिव है , सीसीटीवी कैमरा लगने वाला है और आप कह रहे है केंद्रीय बल नही आयेगा, देखिए अगर ऐसा है तो मुझे कमिशन को मैसेज करना पड़ेगा "। सेक्टर ने कहा " मैसेज कीजिएगा तो फिर आप समझाएगा , बाद में हमलोग कुछ नही कर पाएंगे"। अभिनाश डर गया । उसने सोचा की आंखीर ये सब हो क्या रहा है। वह निर्णय नही ले पा रहा था । अंत में उसने सोचा की मैसेज न करना ही सही रहेगा । फिर सबने खाना खाया । रात १२ बजे तक अभिनाश ने कुछ पेपर वर्क किए और लेट गया। सुबह चार बजे भी उठना था। फिर कुछ लोगो की आने की आवाज आ रही थी। वे लोग दरवाजा खटखटाने लगे। अनलोगो ने बुलाया " सर।, सर!" अभिनाश चुपचाप लेटा ही रहा। बाकी के कर्मियों ने दरवाजा खोला । वेलोग धमकी देने आए थे। उन्होंने कहा " सर! कल कुछ गडबड नही होनी चाहिए, नही तो सामने जंगल देख रहे है , ये जंगल बहुत बड़ी है , जंगल के उस पर एक नदी है और नदी के पार फिर वीरान जंगल है , आप सबको ऐसी जगह पहुंचा देंगे ,कोई ढूंढ के भी नही पायेगा , कोई नही आयेगा बचाने, कोई केंद्रीय बल यहां नही आयेगा ,सब पुलिस भी अपना है "। इतना बोलकर वे लोग चले गए। अभिनाश चुपचाप सुना और समझ गया था की कल जरूर कुछ गडबड होगा। लेकिन उसे इस बात का अनुभव था की जो भी होगा कल शाम के बाद ही होगा । दिन में कुछ करने का बहुत कम चांस है । उसे तरकीब सूझी की पांच बजे तक किसी भी हाल में उसे मतदान खत्म करना होगा । अन्यथा रात हुई तो कुछ भी हो सकता है।

दूसरे दिन अभिनाश ४ बजे ही उठ गया । उसने सभी कर्मियों को जगाया और कहा " देखो ! यहां पर जरूर कुछ बुरा होने वाला है लेकिन मुझे लगता है की अगर हम रात होने से पहले ही वोट खत्म कर दे तो यहां से सुरक्षित निकाल सकते है , देखो कोई भी लापरवाही मत करना ,हमारी एक ही रणनीति है ,हमे जल्दी वोट खत्म करना होगा शायद इससे काम बन सके, मुझे और कोई रास्ता नजर नहीं आता"। सभी कर्मियों ने अभिनाश के बातो को गंभीरता से लिया । सभी ने भरोसा दिलाया की वे लोग जल्दी वोट खत्म करने की कोशिश करेंगे। कुल मतदाता हजार से भी ऊपर थे । बाकी किसी को वोट कराने का कोई अनुभव नहीं । अभिनाश को असंभव लग रहा था वोट ५ बजे तक खत्म करना । लेकिन कोशिश करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। सभी तैयार हुए । पोलिंग एजेंट भी सभी आ गए । मॉक पोल भी हुआ और ठीक सात बजे वोटिंग शुरू हो गया । ग्यारह बजे तक तो सब कुछ ठीक था । जिस गति से वोटिंग चल रहा था उससे तो अभिनाश को यही लग रहा था की पांच बजे तक वोटिंग खत्म हो जाएगा । एक लड़की अपने बूढ़े बाप को लेकर वोट दिलवाने आई । उसने कहां " सर ! पिताजी को दिक्कत है इसीलिए वोट दिलवाने मैं लेकर आई हूं" । अभिनाश ने पूछ "क्यों देख नही सकते क्या"। लड़की ने कहा "थोड़ी थोड़ी देख सकते है ,पर वोट डाल नही पाएंगे"। अभिनाश ने कहा "लगता तो है डाल सकते है, ठीक है पहले कोशिश करने दीजिए अगर नही दे पाते है तो मैं आपको साथ जाने का अनुमति दे दूंगा "। इस बात पर पोलिंग एजेंट भड़क गया और कहने लगा " जब वो बोल रहा है की नही सकेगा तो फिर आप जबजस्ती क्यों कर रहे है "। पोलिंग एजेंट का बात सुनकर अभिनाश को बहुत गुस्सा आया क्योंकि पोलिंग एजेंट का काम है सिर्फ वोटर को आइडेंटिफाई करना और न की वोट कर्मी के मामले में दखल देना। लेकिन वह क्या कर सकता था। केंद्रीय बल तो था नही । पुलिस से भी कोई उम्मीद नहीं थी । आखिर किसके दम पर वह पोलिंग एजेंट को सही गलत का भेद बताता । अभिनाश ने सोचा की उलझ कर कोई फायदा नही है। उसने कहा "ठीक है ! मैं अनुमति देता हूं लेकिन एक फॉर्म भरना पड़ेगा उसके बाद"। यह देखते हुए दूसरे पार्टी के पोलिंग एजेंट भी भड़क उठा और कहा " सर! उसको आप साथी दे रहे है ,हमारे लोगो को भी देना पड़ेगा "।बाहर कुछ आवाजे जोर जोर से आने लगी । अभिनाश बाहर जाकर देखा तो । दरवाजा पर सभी लदे हुए थे। पुलिस दूर कोने में कुर्सी लगाकर बैठा हुआ था। अभिनाश ने पुलिस को बुलाया और कहा "आप वहां क्या कर रहे है ? यहां पर आकर खड़े हो जाइए, कतार बनाए रखने की कोशिश कीजिए, किसी को जबरदस्ती अंदर आने मत दीजिएगा"। पुलिस ने कहा " यहां पर सभी अच्छे लोग है बाबू ,कुछ नही होगा "। फिर अभिनाश ने कहा "अरे लोग तो सभी अच्छे ही होते है ,लेकिन ड्यूटी करना तो आपका काम है ,आप आइए यहां पर ,यहां खड़े हो जाइए"। यह कहते हुए यश ने मतदाताओं के तरफ देखा । सभी अभिनाश को घूर रहे थे। अभिनाश समझ गया की पुलिस क्यों दूर जाकर बैठा था । इसके बाद जो हुआ अभिनाश का तो हालत देखने लायक था। सभी वृद्ध नागरिकों ने साथी लेकर आना शुरू कर दिया । दिन भर साथी फॉर्म भरते भरते अभिनाश का तो कमर ही टूट गया। अभिनाश का तो एक ही लक्ष्य था की अंधेरा न होने पाए । लंच का टाइम हो चुका था ।लेकिन अभिनाश जनता था । लंच करके टाइम बरबाद करना बाद में महंगा पड़ेगा। साथी कर्मी सभी ने बारी बारी से लंच किया । लेकिन अभिनाश भूखा ही रह गया । अंदर साथी वोट , पोलिंग एजेंट की दादागिरी, बाहर लोगो का सोर गुल और पुलिस की हालत देख देख कर अभिनाश का शक्ति खत्म हो रहा था । लेकिन जानता था की उसके हिम्मत हारने से उसके साथियों का हौसला भी टूट जाता । उसने ठंडे दिमाग से काम लेना ठीक समझा । साम के पांच बज गए और जिस बात का डर था वही हुआ । मतदाता अभी भी कतार में खड़े थे ।

अभिनाश ने बाहर जाकर देखा की डेढ़ सौ के करीब लोग थे । उसके हाथों में पहले से हि टोकन तैयार थे। उसने कतार में खड़े लोगो को टोकन देना शुरू किया। सबसे अंत में जो खड़ा था उसके हाथो में टोकन देना जब चाहा तो उसने मना कर दिया। उसने कहा "आप अभी टोकन क्यों दे रहे है "। अभिनाश ने कहा " पांच बज चुके है और पांच बजे सबको टोकन दिया जाता है,जिसके हाथो में टोकन होंगे वही वोट दे पाएंगे" । उस अंतिम व्यक्ति ने माना करते हुए कहा " नही ! अभी मेरे लोग आ रहे है ,उनको आने में और एक घंटा समय लगेगा ,आप ऐसे कैसे टोकन दे सकते है ,अभी टोकन मत दीजिए"। यह सुनकर बगल में खड़े व्यक्ति ने कहा "सर! अगर एक घंटा इंतजार करेंगे तो और एक घंटा इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि हमारे लोग भी आ रहे है और उन्हें आने में दो घंटा और लगेगा "।अभिनाश को पता था उसे जैसे भी टोकन देना ही है ।उसने कहां " देखिए भैया! जैसा निर्देश है ,उसी के अनुसार हमलोगो को चलना होता है ,आप तो पढ़े लिखे और समझदार मालूम पड़ते है ,टोकन लीजिए, रखिए"। ऐसा बोलकर अभिनाश ने उनके टी शर्ट के पॉकेट में टोकन रख दिया और दूसरे लोगो को भी जल्दी जल्दी टोकन देना शुरू कर दिया। कोई भी टोकन नही लेना चाहता था लेकिन अभिनाश ने जल्दी जल्दी बातों में सबको उलझा दिया और सबके हाथों में टोकन थमा दिया। टोकन देने के बाद फिर वोटिंग शुरू हुआ । करीबन साढ़े पांच बज रहे थे । भूख, प्यास, टेंशन और डर सब कुछ था । मतदान कर्मी भी जल्दी जल्दी काम कर थक चुके थे। हड़बड़ी में कुछ गड़बड़ी होने का भी डर था । फिर भी अभिनाश ने हिम्मत से काम लिया और अपने साथियों को इशारों में ही हौसला देने की कोशिश करते रहे। और एक घंटा और रात हो जायेगी । बाहर १५० मतदाता कतार में । फिर बाहर से वही अंतिम व्यक्ति वोटर स्लिप लेकर आया जिसमे लिखा हुआ था वोट ६ बजे खत्म होगा। इस बात पर बहस शुरु हो गया । अभिनाश ने अपना हैंडबुक निकाल कर उस व्यक्ति को दिखाया जिसमे लिखा हुआ था की पांच बजे टोकन देना है । उस व्यक्ति ने हैंडबूक को ही गलत ठहरा दिया । उसने कहा "इसमें कुछ गलत लिखा है वोटर स्लिप में तो ६ बजे बंद होने का समय दिया हैं"। अभिनाश ने कहा "हां! सही तो है ,पांच बजे से टोकन देना है और ६ बजे तक खत्म कर देना है"। उस व्यक्ति ने कहा " नही ! आप कुछ गलत कर रहे है ,मैं वोटर स्लिप के पीछे लिखे हेल्पलाइन नंबर पर फोन करके सबकुछ बोल दूंगा" । अभिनाश ने कहा " ये तो आपका अधिकार है अगर आपको लगता है की कुछ गलत हो रहा है तो आप हेल्पलाइन में फोन कर सकते है "। उस व्यक्ति ने कहा " आप ऐसे नही मानेंगे , रुकिए कुछ करता हूं"। वोटिंग फिर शुरू हुआ । इस बार तो अभिनाश ने जोर से चिल्लाते हुए अपने साथियों से कहा " जल्दी करो और सावधानी से कोई गडबड नही होनी चाहिए" । जैसे जैसे बाहर लाइन कम होती गई , अन्य लोगो की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। अभिनाश सोच रहा था की जब मतदाता बचा ही नहीं तो फिर भीड़ क्यूं । साढ़े ६ बजे वोटिंग खत्म हुई । अभिनाश वोट समाप्ति की घोषणा करने बाहर निकला तो उसने देखा की लोगो की भीड़ जमी हुई थी। फिर भी उसने सभी को वोट समाप्त करने की सूचना दी । सभी अभिनाश पर घूर रहे थे । अंधेरा हो चुका था । अभिनाश अंदर गया और दरवाजा बंद किया । अभिनाश ने सोचा की जल्दी से पोलिंग एजेंट को पोल रिपोर्ट देकर वहां से निकल जायेंगे । उसने अपने साथियों को बाकी सब पैकिंग करने के लिए बोला और खुद पोलिंग एजेंट को देने वाला रिपोर्ट तैयार करने लगा । उसी वक्त दरवाजा खटखटाते हुए कुछ लोगो ने आवाज दिया " दरवाजा खोलो ! दरवाजा खोलो!" किसी को दरवाजा खोलने की हिम्मत नही हो रही थी । अभिनाश सोचा "पता नही अब क्या होगा "। फिर भी वह दरवाजा के सामने गया और पूछा " आप कौन"। उधर से आवाज आई । हमलोग पुलिस के आदमी है दरवाजा खोलिए। अभिनाश को थोड़ा संदेह था की ये कोई चाल हो सकता है । फिर भी उसने हिम्मत करते हुए धीरे धीरे दरवाजा खोला। उसने देखा की दो तीन गाड़ी भर भर के पुलिस आई हुई थी। पुलिस ने कहा " सर! बाकी का काम बाद में कीजिएगा जो जरूरी है उसी को कीजिए और जल्दी से निकलिए यहां से ,हम बाहर आपका इंतजार कर रहे है "। अभिनाश ने कहा " आधा घंटा का समय दीजिए हम निकलते है " । तब अभिनाश और उसके साथियों के जान में जान आई। पोलिंग एजेंट को रिपोर्ट थमाकर सभी कर्मी बाहर निकले । गाड़ी तक पहुंचने के लिए उनलोगो को १० से १५ मिनट लगा होगा । लोगो का भीड़ ही इतना था । सभी जाकर गाड़ी में बैठ गए । पुलिस गाड़ी में बैठने तक साथ रही । पुलिस का एक गाड़ी पीछे और एक सामने था। गाड़ी को आगे बढ़ने के लिए भी समय लग रहा था इसलिए नही की वहा का रास्ता खराब था बल्कि लोगो का भीड़ था। जब गाड़ी भीड़ से बाहर निकली तब अभिनाश और उनके साथियों को ऐसा लगा जैसे जान बच गई। अभिनाश थोड़ा सोच में पड़ गया की उतना पुलिस ऐन वक्त में आई कहां से । उसने सोचा "शायद ! उस टोकन लेने वाले अंतिम व्यक्ति की मेहरबानी हुआ होगा" । उसने इलेक्शन कमिशन से शिकायत की होगी और इलेक्शन कमिशन के शक्त कार्यवाही के अंतर्गत पुलिस को आना पड़ा होगा। अभिनाश को बहुत गर्व हुआ उस दिन इलेक्शन कमिशन पर । अभिनाश को बहुत गर्व हुआ उस दिन अपने देश पर । अभिनाश को बहुत गर्व हुआ अपने "भारत देश" पर । _____ " जय हिंद " _____