क्या था तेरे मन में ,

मैं पढ़ न सका ।

पीड़ा तेरे आंखो का ,

मैं सह न सका।

फिर इंसानियत ने पुकारा,

मैने मदद किया तुम्हारा ।

मुस्कान होठों की तुम्हारी,

आभार व्यक्त की हमारी ।

कदम बढ़ाकर करीब आए,

गले लगाकर भरोसा दिलाए ।

विपत्ति में साथ देने का ,

मीठा सा एहसास भी दिलाएं ।

किस्मत ने ठुकराया जब हमे,

बुरे दिन तो हमारे भी आए ।

तुम्हारी भरोसा ने बुलाया मुझे,

तेरी और हम खींचे चले आए ।

मेरी बिनती भी सुनी तुमने ,

मदद का हाथ भी बढ़ाया।

पर एहसानो का हवाला देकर,

हिसाब किताब बराबर कर दिया।

आश्चर्य हुआ इस बात से ,

कि तुमने मदद किया मेरा,

क्योंकि सिर्फ इसलिए,

मैने मदद किया था तुम्हारा।

लेकिन मैं भी यही सोचता

जब तुमने मदद चाहा हमारा ,

तो सोचो उन बुरे हालातों में

क्या तुम्हे मदद मिलता हमारा ।

मैं मजबूर हो गया ,

सोच में डूब गया।

बुरे हालातों में अगर,

में तुम्हारे जगह होता,

क्या तुम्हारी मानसिकता,

हमारी मदद कर पाता।

गलत था मैं क्योंकि,

तुझमें इंसानियत को देखा।

में जैसा हूं खुद में,

तुमको वैसा ही समझा।

क्या किसी को कुछ देने से,

वो भीख में बदल जाता है?

किया देनेवाला खुद को ,

किसी का भगवान समझ लेता है?

मदद तो अंतरात्मा से,

निकली हुई आवाज है।

जो इंसानियत के होने का,

सबको एहसास दिलाती है।

चलो सब आगे बढ़े ,

स्वार्थहीन भाव से ,

मदद करने की कोशिश करे।

"जय हिंद"

कविता(मदद)

क्या था तेरे मन में , मैं पढ़ न सका । पीड़ा तेरे आंखो का , मैं सह न सका। फिर इंसानियत ने पुकारा, मैने मदद किया तुम्हारा । मुस्कान होठों की तुम्हारी, आभार व्यक्त की हमारी । कदम बढ़ाकर करीब आए, गले लगाकर भरोसा दिलाए । विपत्ति में साथ देने का , मीठा सा एहसास भी दिलाएं । किस्मत ने ठुकराया जब हमे, बुरे दिन तो हमारे भी आए । तुम्हारी भरोसा ने बुलाया मुझे, तेरी और हम खींचे चले आए । मेरी बिनती भी सुनी तुमने , मदद का हाथ भी बढ़ाया। पर एहसानो का हवाला देकर , हिसाब_किताब बराबर कर दिया। गलत था मैं क्योंकि, तुझमें इंसानियत को देखा। में जैसा हूं खुद में, तुमको वैसा ही समझा। क्या किसी को कुछ देने से, वो भीख में बदल जाता है? किया देनेवाला खुद को , किसी का भगवान समझ लेता है? मदद तो अंतरात्मा से, निकली हुई आवाज है। जो इंसानियत के होने का, सबको एहसास दिलाती है। चलो सब आगे बढ़े , स्वार्थहीन भाव से , मदद करने की कोशिश करे। "जय हिंद" <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>

प्रेम चंद रविदास

5/21/20231 min read