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क्या छोटे कहना मानेंगे ,

पांव छूकर सम्मान देंगे।

पढ़ लिख लिया ज्यादा कहीं,

हमको ही ज्ञान तो नही देंगे।

हमारी गलती को पकड़कर,

हमसे ज्यादा बोलेंगे तो नही।

हमारे फैसले के खिलाप जाकर,

हमसे ही बगावत करेंगे तो नही।

कब तक उलझते रहेंगे,

आदर्शो की गंभीरता में।

पिछड़े थे ,पिछड़े है,

क्या पिछड़े ही रहेंगे?

चलिए न ऊपर उठकर,

अपने अंदर भी झांकते है,

अपनी कैमियो को ढूंढकर,

खुद ही से झगड़ते है।

चलिए न थोड़ा झुककर,

सच्चाई का साथ देते है।

शिक्षा का कदर करके ,

ईमानदार को महत्व देते है।

चलिए न थोड़ा झुकते है,

कुछ अलग कर दिखाते है।

केवल दूसरो को दोष देकर,

खुद को सांत्वना कब तक देंगे।

छल कपट का सहारा लेकर

अंखिर कितना दूर तक जायेंगे।

केवल सोच बदलने से अगर,

बदलाव का आरंभ हो सकता है।

इस प्रयास से किसी को भला,

एतराज क्यों हो सकता है।

सब कुछ कर देख लिया अगर,

एक बार छोटे को भी मौका दे।

ज्ञान उम्र का मोहताज नहीं,

सालो तपस्या का फल होता है।

चलिए न सोच बदलते है,

कुछ अलग कर दिखाते है।

कविता(कुछ अलग कर दिखाते है)

क्या छोटे कहना मानेंगे , पांव छूकर सम्मान देंगे। पढ़ लिख लिया ज्यादा कहीं, हमको ही ज्ञान तो नही देंगे। हमारी गलती को पकड़कर, हमसे ज्यादा बोलेंगे तो नही। हमारे फैसले के खिलाप जाकर, हमसे ही बगावत करेंगे तो नही। कब तक उलझते रहेंगे, आदर्शो की गंभीरता में। पिछड़े थे ,पिछड़े है, क्या पिछड़े ही रहेंगे? चलिए न ऊपर उठकर, अपने अंदर भी झांकते है, अपनी कैमियो को ढूंढकर, खुद ही से झगड़ते है। चलिए न थोड़ा झुककर, सच्चाई का साथ देते है। शिक्षा का कदर करके , ईमानदार को महत्व देते है। चलिए न थोड़ा झुकते है, कुछ अलग कर दिखाते है। केवल दूसरो को दोष देकर, खुद को सांत्वना कब तक देंगे। छल कपट का सहारा लेकर अंखिर कितना दूर तक जायेंगे। केवल सोच बदलने से अगर, बदलाव का आरंभ हो सकता है। इस प्रयास से किसी को भला, एतराज क्यों हो सकता है। सब कुछ कर देख लिया अगर, एक बार छोटे को भी मौका दे। ज्ञान उम्र का मोहताज नहीं, सालो तपस्या का फल होता है। चलिए न सोच बदलते है, कुछ अलग कर दिखाते है।<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>

प्रेम चंद रविदास

5/27/20231 min read