किताबों में पढ़ा था हमने

शिक्षा तो हमने ले ली,

पर शिक्षित हम हो न सके।

शिक्षा तो बस गया दिल में ,

पर उसे कभी जीवन में उतार न सके।

किताबों में पढ़ा था हमने,

आज के काम को कल पर नही छोड़ेंगे।

एक कदम आगे की सोचा था हमने ,

कल के काम को आज ही कर डालेंगे।

आज के काम को आज ही करने की ,

आदत हम डाल न सके ।

शिक्षा तो बस गया दिल में ,

पर उसे कभी जीवन में उतार न सके।

किताबों में पढ़ा था हमने,

मिलकर रहेंगे तो कोई कुछ बिगड़ नही सकता।

सातों लकड़ी को बांध दे तो उसे कोई तोड़ नही सकता ।

आज भी हम भाई बहनों से नफरत करते है ।

मां बाप की संपति पर नजर जमाए रखते है ।

अहंकार और लालच पर ,

जीत हासिल कर न सके ।

शिक्षा तो बस गया दिल में ,

पर उसे कभी जीवन में उतार न सके।

किताबों में पढ़ा था हमने,

राजा सत्य हरिश्चंद्र की सचाई की कहानी।

लाखो मुसीबत क्यों न आए जीवन में ,

अंत में है सच्चाई की ही जीत होनी।

जब बुराई का सामना हमसे हुआ ,

तो सच्चाई की आवाज उठा न सके ।

शिक्षा तो बस गया दिल में ,

पर उसे कभी जीवन में उतार न सके।

किताबों में पढ़ा था हमने,

दहेज प्रथा समाज के लिए अभिशाप है।

बेटियो को प्रताड़ित करना घोर पाप है।

जब बेटे की सादी की बारी आई ,

बिना दहेज के बेटी मांग न सके ।

बेटियो का नखरा तो बहुत झेला,

पर बहु को बेटी मान न सके।

शिक्षा तो हमने ले ली ,

पर शिक्षित हम हो न सके ।

शिक्षा तो बस गया दिल में ,

पर उसे कभी जीवन में उतार न सके।

(यह स्वरचित कविता है। कृपया इसे न चुराए। अन्यथा कैश हो सकता है)

कविता(किताबों में पढ़ा था हमने)

शिक्षा तो हमने ले ली, पर शिक्षित हम हो न सके। शिक्षा तो बस गया दिल में , पर उसे कभी जीवन में उतार न सके। किताबों में पढ़ा था हमने, आज के काम को कल पर नही छोड़ेंगे। एक कदम आगे की सोचा था हमने , कल के काम को आज ही कर डालेंगे। आज के काम को आज ही करने की , आदत हम डाल न सके । शिक्षा तो बस गया दिल में , पर उसे कभी जीवन में उतार न सके। किताबों में पढ़ा था हमने, मिलकर रहेंगे तो कोई कुछ बिगड़ नही सकता। सातों लकड़ी को बांध दे तो उसे कोई तोड़ नही सकता ।आज भी हम भाई बहनों से नफरत करते है । मां बाप की संपति पर नजर जमाए रखते है । अहंकार और लालच पर , जीत हासिल कर न सके । शिक्षा तो बस गया दिल में , पर उसे कभी जीवन में उतार न सके। किताबों में पढ़ा था हमने, राजा सत्य हरिश्चंद्र की सचाई की कहानी। लाखो मुसीबत क्यों न आए जीवन में , अंत में है सच्चाई की ही जीत होनी। जब बुराई का सामना हमसे हुआ , तो सच्चाई की आवाज उठा न सके । शिक्षा तो बस गया दिल में , पर उसे कभी जीवन में उतार न सके। किताबों में पढ़ा था हमने, दहेज प्रथा समाज के लिए अभिशाप है। बेटियो को प्रताड़ित करना घोर पाप है। जब बेटे की सादी की बारी आई , बिना दहेज के बेटी मांग न सके । बेटियो का नखरा तो बहुत झेला, पर बहु को बेटी मान न सके। शिक्षा तो हमने ले ली , पर शिक्षित हम हो न सके । शिक्षा तो बस गया दिल में , पर उसे कभी जीवन में उतार न सके। (यह स्वरचित कविता है। कृपया इसे न चुराए। अन्यथा कैश हो सकता है)<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>

प्रेम चंद रविदास

1/17/20231 min read