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हालातो की मार अगर
मेरे दिल पर चोट करे।
धीरता की मरहम से,
घाव भरना चाहता हूं।
बुरे खयालातों का दीमक,
अगर मेरे जेहन को चाटे ।
प्रेरणाओं का तेज प्रकाश,
मन को दिखाना चाहता हूं।
मंजिल पाने का सफर अगर,
संघर्षों की बाधाओं से भरे हो।
मनोबल को ढाल बनाकर,
एक योद्धा बनना चाहता हूं।
लक्ष्य हासिल करने के बाद,
जो एहसास मन को छुएगी।
आंखो में बसी उन आंसुओ की,
खुशी महसूस करना चाहता हूं।
अपनी जिंदगी को मैं कुछ,
इस कदर जीना चाहता हूं।
दरिद्रता की बेड़ियों से अगर,
बंधा हो परिवार का सौभाग्य।
प्रयासों की कुलहड़ियो से,
बंधन तोड़ देना चाहता हूं।
जाने अंजाने दे दिया आगर,
जखम अपनो के हृदय को।
मान अभिमान त्यागकर,
सर झुका लेना चाहता हूं।
मेरी सख्ती बरतने से अगर,
सबके मन में घुटन सा हो।
आदत से मजबूर में खुद,
दूर चला जाना चाहता हूं।
सबको खुश देखने के बाद,
जो एहसास मन को छुएगी।
भुजाओं से लगी उस पंख की,
उड़ान महसूस करना चाहता हूं।
अपनी जिंदगी को मैं कुछ ,
इस कदर जीना चाहता हूं।
दूसरो की जिन्दगी अगर,
मेरी गन्दगी से बीमार हो।
ईमानदारी की साबुन से,
बैमानी धो देना चाहता हूं।
दूसरो का अधिकार अगर ,
मेरा लालच का शिकार हो।
अपने ही के खिलाप मैं,
खड़ा हो जाना चाहता हूं।
किसी के कष्टों में अगर ,
विवशता नजर आता हो।
मदद की आश लिए नजरो से,
अपना नजर मिलाना चाहता हूं।
आशीर्वाद मिलने के बाद,
जो एहसास मन को छुएगी।
सांसों में बसी उस शुकून की,
ठंडक महसूस करना चाहता हूं।
अपनी जिंदगी को मैं कुछ,
इस कदर जीना चाहता हूं।
कर्तव्य की राह में अगर,
तन्हाई साथ न छोड़ता हो।
ईश्वर की अनुभूति को,
शक्ति बनाना चाहता हूं।
सामने पूरा सिस्टम अगर,
भ्रष्टता का चरण छूता हो ।
शहीदों की शहादत को ,
स्मरण करना चाहता हूं।
मांगे मुझसे मिट्टी अगर,
मेरी जान की कुरबानी।
मिट्टी का कर्ज चुकाकर,
मिट्टी बन जाना चाहता हूं।
अपना भूमिका निभाने के बाद,
जो एहसास मेरे मन को छुएगी।
सांसों में बसी उस गौरव की ,
गुमान महसूस करना चाहता हूं।
अपनी जिंदगी को मैं कुछ ,
इस कदर जीना चाहता हूं।
कविता (जीवन के अनमोल एहसास)
लोग सोचते हैं की जिंदगी में केवल पैसा कमाना ही सबसे बड़ी बात होती है । पैसा हमे जो सुख देता है उसे हम महसूस करते हुए कहते हैं की जिंदगी कितनी खूबसूरत है । लेकिन कुछ लोग थे ,हैं और रहेंगे इस दुनिया में जिसके लिए कुछ एहसास अनमोल है जिसे पैसों से खरीदा नही जा सकता । और वे एहसास सबसे खूबसूरत हैं उन्ही कुछ एहसासों को मैने इस कविता में जगह देने की कोशिश की है।कृपया नीचे पढ़े। <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>
प्रेम चंद रविदास
6/9/20231 min read
