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दिवारे दहल उठी है।
आशियाना उजड़ गई है।
दरारों में दबी हुई है तेरी जिंदगी,
बिस्वास की बलि कभी चढ़ने मत देना।
अस्थिर दुनिया में हालत बदलेंगे जरूर,
अपने फैसले को कभी बदलने मत देना।
मोहब्बत की है हुनर से अगर ,
तो उसे निभाने का हौसला रखना।
लक्ष्य तुमको साफ नजर आएगी,
बस उम्मीद का दिया जलाए रखना।
स्वच्छ निर्मल हृदय का परिश्रम,
दुआ बनकर ईश्वर तक पहुंचेगी।
तुम्हे किसी से प्रोत्साहन की जरूरत नहीं,
तेरी आत्मविश्वास ही तुझे प्रेरित करेगी।
तीर तेरे हौसले को ,
छलनी कर नही सकती।
धार तेरे नंगे पांव को,
चलने से रोक नही सकती।
भूख प्यास में इतना दम नहीं ,
की तुझे मिटा दे ।
आंधियों में इतना शक्ति नही,
की तुझे झुका दे।
कड़कती धूप तेरे संकल्प को,
जला नही सकती।
समुंदर की लहर तेरी निष्ठा को,
डूबा नही सकती।
तुम एक ज्वालामुखी हो,
धरती चिर कर ऊपर आओगे।
अपनी जिद की आग से,
एक नया मुकाम बनाओगे।
एक जिंदगी , एक हुनर,
एक मौका और सालो की मेहनत,
अपनी योग्यता को गले से लगा लो।
जिंदगी जीने के तरीके तो बहुत है,
बुलंदियों को छूकर निगाहों को मौका दो।
" प्रेम चंद रविदास "
कविता(हुनर से मोहब्बत)
दिवारे दहल उठी है। आशियाना उजड़ गई है। दरारों में दबी हुई है तेरी जिंदगी। बिस्वास की बलि कभी चढ़ने मत देना। अस्थिर दुनिया में हालात बदलेंगे जरूर, अपने फैसले को कभी बदलने मत देना। मोहब्बत की है हुनर से अगर , तो उसे निभाने का हौसला रखना। लक्ष्य तुमको साफ नजर आएगी, बस उम्मीद का दिया जलाए रखना। स्वच्छ निर्मल हृदय का परिश्रम, दुआ बनकर ईश्वर तक पहुंचेगी। तुम्हे किसी से प्रोत्साहन की जरूरत नहीं, तेरी आत्मविश्वास ही तुझे प्रेरित करेगी। तीर तेरे हौसले को , छलनी कर नही सकती। धार तेरे नंगे पांव को, चलने से रोक नही सकती। भूख प्यास में इतना दम नहीं , की तुझे मिटा दे । आंधियों में इतना शक्ति नही, की तुझे झुका दे। कड़कती धूप तेरे संकल्प को, जला नही सकती। समुंदर की लहर तेरी निष्ठा को, डूबा नही सकती। तुम एक ज्वालामुखी हो, धरती चिर कर ऊपर आओगे। अपनी जिद की आग से, एक नया मुकाम बनाओगे। एक जिंदगी , एक हुनर, एक मौका और सालो की मेहनत, अपनी योग्यता को गले से लगा लो। जिंदगी जीने के तरीके तो बहुत है, बुलंदियों को छूकर निगाहों को मौका दो।<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>
प्रेम चंद रविदास
5/17/20231 min read
