कहानी(शिकायत २)
नमस्कार दोस्तो ! मैं एक बार फिर से स्वागत करता हूं मेरे ब्लॉग में जिसका नाम है आर्टिकल एंड स्टोरीज । दोस्तो आपने मेरी कहानी " शिकायत " तो पढ़ी ही होगी ।अगर नही पढ़ी है तो कृपया मेरे कहानी "शिकायत " को जरूर पढ़ ले । नही तो मेरा "शिकायत २" ठीक से समझ नही आयेगा । तो चलिए दोस्तो कहानी सुरु करते हैं ।यू बी आई जो अभी पी एन बी बन गया है में जो घटना घटी इसके बाद ५ से ६साल बीत गए। मुझे इंडियन ओवरसीज बैंक से पैसा विड्रा करना था। मेरा एटीएम खो गया था ।इसीलिए मुझे विड्रा फॉर्म भर के पैसा निकालना था। मैं १० बजे ही बैंक में पहुंच गया था क्योंकि पैसा विड्रा करके मुझे टाइम से स्कूल पहुंचना था । मैने विड्रा फॉर्म भरी और कैश काउंटर में जाकर जमा दिया । कैशियर ने मेरे विड्रा फॉर्म को ध्यान से देखा और थोड़ा गुस्से में मुझसे कहा की आपका सिग्नेचर मैच नही कर रहा है ठीक से साइन करके दीजिए। मुझे अजीब लगा ये कैसे हो सकता है । इससे पहले भी मैने वही सिग्नेचर करके उसी बैंक से पैसा विड्रा किया था तब तो कोई प्रोब्लेम नही हुआ था। मैने कैशियर से कहा " सर! इससे पहले भी तो मैने यही सिग्नेचर किया था तब तो कोई प्रोब्लेम नहीं हुआ था" । कैशियर ने फिर गुस्से में कहा " r डिफर कर रहा है और d इतना स्टाइलिस्ट नही है"। तो मैने दुबारा साइन करके दिया । उसने फिर पैसा देने से मना कर दिया । पैसा निकालना बहुत जरूरी था और स्कूल भीं टाइम से पहुंचना था। मुझे लेट हो रहा थी । मैं बैंक मैनेजर के पास गया और कहा " सर !मेरा सिग्नेचर मैच नहीं कर रहा है और मुझे ठीक तरह से याद नहीं आ रहा है की अकाउंट खोलते समय मैने कैसा सिग्नेचर किया था". मैनेजर ने मेरी पूरी बात भी नहीं सुनी और कहा " आप वहां (एक कर्मचारी के तरफ इशारा करते हुए) जाइए और बोलिए मैं सिग्नेचर चेंज कराना चाहता हु "। मैनेजर को देख के ऐसा लगा जैसे की पहले से ही उसका मूड खराब था। फिर मैं उस कर्मचारी के पास गया और कहा "सर ! मैं सिग्नेचर चेंज करना चाहता हु"। वो कर्मचारी भी कुछ परेशान था और कहा " अरे ! जैसा सिग्नेचर है वैसा ही कर के दे दो ना"। मैने उनसे कहा " सर ! अकाउंट खोले हुए ८ साल हो चुके है और मैं भूल भी गया हूं की मैने तब कैसा सिग्नेचर किया था"। उसने मुझे थोड़ा कॉपरेट किया और मेरे स्पेसिमैन सिग्नेचर को दिखाया । मैने देखा की मेरे सिग्नेचर में ज्यादा कुछ डिफरेंस नहीं था । R बिलकुल ही अलग था और d साधारण था । तो d तो मेरा बन जाता लेकिन r बनाना थोड़ा मुस्किल था। मैने फिर भी कोशिश किया और एक बार फिर विड्रा फॉर्म भरके दिया । कैशियर ने सिग्नेचर वेरिफाई किया और फिर पैसा देने से मना कर दिया । अब मुझे देर होने लगी थी । मैं किया करता फिर उस कर्मचारी (जिसने सिग्नेचर दिखाया था) के पास गया और बोला " सर ! मैं पुराना वाला सिग्नेचर नही कर पा रहा हु मुझे सिग्नेचर बदलना है"। उसने मुझे फिर दूसरे कर्मचारी के पास भेजा । मैं वहां से फिर दूसरे कर्मचारी के पास गया और फिर उसे भीं कहा " सर मुझे अपना सिग्नेचर चेंज करवाना है"। वो भी गुस्से में था । उसने मुझे बहुत ही गुस्से में कहा " आपको अगर सिग्नेचर बदलना है तो पहला वाला सिग्नेचर करना ही पड़ेगा, नही तो सिग्नेचर चेंज नहीं होगा "। उसने फिर कहा " अच्छा होगा आप पहला वाला ही सिग्नेचर करके पैसा निकालिए"। मैं कन्फर्म हो गया था की बैंक के सभी स्टाफ मुझे परेशान कर रहे है। क्युकी मुझे यह बात पहले से ही पता था की अगर हम चाहे तो अपना सिग्नेचर बदल सकते है और ऐसा मैने दूसरे बैंक में किया भी था। अब मुझे बहुत देर हो गया था । मुझे पैसा की बहुत आवश्यकता थी । मैने चुपचाप एक पेज में लगभग १० मिनट तक अपना पुराना सिग्नेचर करने का प्रैक्टिस किया । और फिर अंत में में पहले वाला सिग्नेचर करने में सफल हुआ और कैशियर ने जब वेरिफाई किया तो सिग्नेचर मैच हो गया । फिर मैने पैसा निकला और स्कूल चला गया उस दिन मुझे स्कूल पहुंचने में काफी देर हो चुकी थी । लॉकडाउन चल रहा था । स्कूल में पठन पाठन बंद था । केवल मिड डे मील का राशन वितरण करना था । पूरे कॉविड नॉर्म्स का अनुसरण करते हुए राशन देना था । पिछले तीन दिनों में राशन देने की पूरी तैयारी तो मैने कर लिया था लेकिन आज का सबसे महत्वपूर्ण काम था की ठीक ग्यारह बजे से राशन सुरु करके राशन वितरण का फोटो खींचकर व्हाट्सएप में भेजना था। स्कूल ही तो मैं ग्यारह बजकर दस मिनट में पहुंचा । अविभावक गण कतार में खड़े हुए थे और देर होने के कारण उनका सब्र का बांध टूटने वाला था। मेरे स्कूल पहुंचते ही सभी पूछने लगे की इतना देर कैसे हो गया । वे कहने लगे " इतना देर करने से होगा ,हमलोग कबसे यह इंतजार कर रहे है "। एक तो बैंक से परेशान होकर भागा दौड़ा आया और अब अविभावक का टिपनी सुनकर और दिमाग खराब हो गया । जाते ही पानी पीने का भी मौका नहीं मिला और राशन सुरु करना पड़ा । लगभग दो घंटे तक लगातार लोग आते रहे और मैं मस्टर रोल पर साइन करता रहा । सेल्फ हेल्प ग्रुप के लोगो का काम था राशन देना और मेरा काम था मस्टर रोल पर अविभावक का हस्ताक्षर लेना । दो घंटे बाद लोगो का आना कम हुआ और थोड़ी राहत मिली। इतना काम था लेकिन फिर भी मुझे बैंक कर्मचारियों का वो बरताव बार बार याद आ रहा था । फिर तीन बजे तक मेरा राशन देने का काम खतम हो गया और मैं चार बजे तक घर पहुंच गया । मैं भूलने की कोशिश कर रहा था लेकिन बैंक कर्मचारियों का वो बरताव मुझे बार बार याद आ रहा था। मेरे मन में यह बात बैठ गई की बैंक कर्मचारियों ने ठीक नही किया। मुझे लगा की मुझे इनकी शिकायत रीजनल ऑफिस में कर देनी चाहिए। मैने गूगल से रीजनल ऑफिस का नंबर निकला और फोन लगाया । एक महिला ने फोन उठाया । मैने उससे कहा की मुझे कंप्लेन करनी है। उसने रीजनल मैनेजर को फोन दे दिया । मैने रीजनल मैनेजर को सारी बात बिस्तर से बताई । मैनेजर ने मुझसे पूछा "क्या आपने ब्रांच मैनेजर को बताया है की आप मुझसे शिकायत करने वाले है " । मैने कहा " मुझे लगा की ब्रांच मैनेजर मेरी कोई मदत नही कर सकते इसीलिए तो मैने आपको फोन किया है "।उन्होंने मेरा नाम और अकाउंट नंबर नोट किया और मुझे कहा "आपका हस्ताक्षर बदल दिया जाएगा , आप ब्रांच मैनेजर के पास जाइए और एक बार फिर अपना समस्या बताइए अगर फिर भी न माने तो लिखित ले लीजिएगा और मुझे मेल कीजियेगा"। मैने रीजनल मैनेजर को धन्यवाद कहा और फोन रख दिया। एक दिन के बाद ब्रांच मैनेजर ने मुझे फोन किया और पूछा " आपने कंप्लेन किया था "। मैने कहा "हां "। वो गुस्से में आ गया और कहने लगा "क्यों कंप्लेन किया था "। मैने कहा "आपलोग मेरे हस्ताक्षर नहीं बदल रहे थे इसीलिए "। वह फिर गुस्से में बड़बड़ाए जा रहा था " आप एक बार मुझसे आ के बोलते ,अगर मैं आपका काम नही करता तो कंप्लेन करते ना, आप तो सीधे रीजनल ऑफिस पहुंच गए , आपके स्कूल में कोई प्रोब्लेम होता है तो बच्चे आप के पास आते है या फिर एस आई के पास चले जाते हैं"। वो गुस्से में बोले ही जा रहे थे मेरी बात ही नही सुन रहे थे। मैने कहा " आपसे बहस करने का मेरा कोई इरादा नहीं है अगर आप मेरी काम नही करना चाहते हैं तो मत कीजिए मेरी पास दूसरी ऑप्शन भी हैं"। जैसे ही मैंने कहा की मेरे पास दूसरा ऑप्शन भी है वो और ज्यादा गुस्सा हो गया और कहने लगा " आप मुझे ऑप्शन मत बताइए ना सर!आप मुझे ऑप्शन मत बताइए ,जब आपने सोच ही लिया है की आप बहुत दूर तक जायेंगे तो जाइए ,लेकिन मैं अपना जगह पर सही हूं ना तो मुझे किसी से डरने की कोई जरूरत ही नही हैं"। मैने कहा " तो फिर बात खतम ! मैं फोन रखता हूं"। जैसे ही मैंने कहा की में फोन रखता हूं वो कहने लगा " आप सोमवार को आइए सर! मैं आपका काम कर दूंगा"। मुझे आश्चर्य हुआ की कैसे इस इंसान ने यू टर्न लिया । थोड़ी देर पहले तो मुझ पर चिल्ला रहा था और अभी कह रहा है की वो मेरा काम कर देगा। इसके बाद मैं सोमवार के दिन बैंक गया । जैसे ही मैंने बैंक में प्रवेश किया मैनेजर ने मुझे देख लिया और बड़े ही सक्रियता से अपने स्टाफ को इशारा किया । स्टाफ ने मेरी ओर देखा और जल्दी से दस्ताबेजो का जत्था लेकर मेरे पास आया । उसमे मेरी आठ साल पुरानी भरी हुई फॉर्म और डॉक्यूमेंट्स थे । ऐसा लग रहा था की पहले से ही वे तैयार थे और मेरा इंतजार कर रहे थे । फिर जल्दी जल्दी मेरी हस्ताक्षर बदलने की परिक्रिया करने लगे । मुझे फॉर्म तक भरना नही पड़ा । और इस तरह अंत में मेरी सिग्नेचर चेंज हो गया । दोस्तो अभी भी हमारे देश में कम पढ़े लिखे लोगो के साथ ग्रामीण इलाके में बैंक कर्मचारियों के द्वारा बुरा बरताव किया जाता हैं । और बहुतों को तो यह पता भी नही चलता है की उसके साथ किया हो रहा हैं । दोस्तों इसके बाद भी मुझे ग्रामीण बैंक और आई सी आई सी आई बैंक में ऐसे जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ा और मैने रीजनल ऑफिस में शिकायत करके अपना समस्या का हल निकाला । दोस्तो आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी कॉमेंट करके जरूर बताएगा । और ईमेल रजिस्टर करके मेरी ब्लॉग को सब्सक्राइब भी कर लीजिएगा । अलबीदा दोस्तो ! फिर मिलेंगे मेरी अगला नई कहानी के साथ ।कहानी(चाय श्रमिक का बेटा_२) (जुदाई)<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>
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