कहानी(शिकायत)
नमस्कार दोस्तो! में प्रेम चंद रविदास स्वागत करता हु आप सबका मेरे ब्लॉग में जिसका नाम है आर्टिकल एंड स्टोरीज । आज मैं फिर एक नई कहानी के साथ हाजिर हु । अगर आप किसी बैंक कर्मचारियों के बुरे वर्ताव से परेशान है या फिर आपका कोई काम बैंक में रुका हुआ है लेकिन आप अपने जगह सही है तो मेरे इस कहानी को अंत तक पढ़ते रहे। मेरे इस कहानी में जरूर आपका सॉल्यूशन छिपा हुआ है। तो चलिए दोस्तो आपको ज्यादा इंतजार नही कराते हुए कहानी को शुरू करते है । ये बात आज से लगभग ७से ८ साल पहले की है । मैं सरकारी स्कूल में एक सहायक शिक्षक के रूप में कार्यरत हूं । मेरा स्कूल १० बजे से ४ बजे तक लगता है । एक दिन मेरा बैंक में एक काम था । मुझे पासबुक एंट्री करवाना था। मैं उस दिन स्कूल से ३ बजे छुट्टी लेके करीबन साढ़े ३ बजे बैंक पहुंचा। जहां पर एंट्री होती थी वहा पर गया । वहा के स्टाफ ने एंट्री कर दिया लेकिन बहुत दिन से एंट्री नही करवाया था तो मेरा पासबुक का पेज खतम हो गया । और भी एंट्री करना बाकी था । तो मैं नया पासबुक अप्लाई करने के लिए डेप्युटी मैनेजर के पास गया और कहा की "सर ! मुझे नया पासबुक चाहिए ,मेरा पासबुक का पेज खतम हो गया है"। तो उसने कहा "अभी नही होगा ! लिंक नही है "। मैने कहा "सर किया बोल रहे है ? अभी तो मैने एंट्री कराया, लिंक तो था"। वो समझ गया की मुझे पता है की लिंक है । फिर उसने मेरा माइंड डायवर्ट करते हुए कहा " अभी सड़े तीन बजके पार हो गए है , सड़े तीन बजे के बाद बैंक में कस्टमर का कोई काम नही होता , आप कल आयेगा " । फिर मैने कहा " सर आप कहते है की तीन बजे के बाद काम नही होता है तो नोटिस कहा लगा हुआ है दिखाइए? वो कहने लगा " मेरा टाइम वेस्ट मत कीजिए जाइए कल आइयेगा" । मैने फिर कहा " आप मुझे लिख के दीजिए की तीन बजे के बाद काम नहीं होता तो मैं चला जाऊंगा "। इस बार वो बहुत गुस्सा हो गया और कहने लगा " क्या मैं यहां बैठ कर सिगरेट पी रहा हु । काम हि कर रहा हूं ना "। बस फिर क्या था ,हम दोनो के बीच बहस शुरू हो गया । बैंक के सभी स्टाफ हमारे तरफ देखने लगे । जब बहस ज्यादा होने लगा तो बैंक का गार्ड आया और मुझे जोर जबरदस्ती करते हुए बाहर निकाल दिया। उस दिन बैंक का मैनेजर नही आया था। मुझे बहुत बुरा लगा क्योंकि लिंक होते हुए भी वो डेप्युटी मैनेजर मुझसे झूठ बोल रहा था ।और फिर जब वो मेरे लिखित मांगने से गुस्सा हो गया तो मुझे पूरा यकीन हो गया की वह जान बूझ कर मेरा काम नही करना चाहता । मैने सोचा की कुछ करना पड़ेगा। फिर मैने गूगल सर्च करके उस बैंक का कस्टमर केयर का नंबर निकला । कस्टमर केयर में फोन किया और बैंक स्टाफ की शिकायत कर दी। कस्टमर केयर के एक्जीक्यूटिव ने मुझे बैंक का रीजनल सेंटर का कॉन्टैक नंबर दिया और वहां बात करने की सलाह दी। मैने रीजनल सेंटर में फोन लगाया तो फोन पिक अप नहीं हो रहा था। फिर मैने सोचा की रीजनल सेंटर में बाद में फोन करूंगा अभी जा के थाना में कंप्लेन कर देता हूं। फिर किया था मैने एक कंप्लेन लेटर लिखा और थाने चला गया । थाना में ड्यूटी ऑफिसर के पास लेटर ले के गया । उसने मेरा लेटर पढ़ा और कहा " बैंक वालो ने आपके साथ बुरा बरताव किया है न ठीक है मैं मैनेजर से बात करता हूं"। उसने मैनेजर को फोन लगाया और कहा की सर आपके बैंक के खिलाप एक कंप्लेन आया है किया कंप्लेन ले लू ? मैनेजर घबरा गया और पूछा किसने कंप्लेन किया है ? ड्यूटी ऑफिसर ने कहा " आपके बैंक के ही एक कस्टमर ने "। मैनेजर ने ड्यूटी ऑफिसर से कहा " आप कस्टमर को पहले फोन दीजिए मैं बात करता हूं"। ड्यूटी ऑफिसर ने मुझे फोन देते हुए कहा "लीजिए ! मैनेजर से बात कर लीजिए"। फिर मैनेजर ने मुझसे कंप्लेन करने का कारण जानना चाहा । मैने बताया कि मुझे नया पासबुक चाहिए था लेकिन आपका स्टाफ मेरा काम नही करना चाहता था । वो झूठ बोलकर मुझे वहा से भेजना चाहा ,और जब उसका झूट पकड़ा गया तो मुझसे झगड़ा करने लगा । बैंक मैनेजर ने मुझसे कहा की आज वह बैंक में नही है अन्यथा वो मेरा काम कर देता । उसने मुझे कहा की कल आइए आपका काम हो जायेगा । मैने कहा की सर मेरी प्रोब्लेम है मुझे स्कूल जाना पड़ता हैं इसलिए मैं आपके बैंकिंग आवर में नही आ सकता । मैनेजर ने कहा "आप किसी भी समय आइए मैं आपका काम कर दूंगा "। फिर मैने कंप्लेन वापिस ले लिया । दूसरे दिन मैं बैंक में फिर सड़े तीन बजे ही गया और वही डेप्युटी मैनेजर बैठा हुआ था । मैं डेप्युटी के पास जा के खड़ा हो गया। उसने मुझे देखा और मेरा पुराना पासबुक मांगा । मैने पुराना पासबुक दिया । फिर उन्होंने चुपचाप मेरा काम किया और मुझे नया पासबुक बनाके नया प्रिंट करके भीं दिया। दोस्तो मैं गुस्से में आकर उस दिन थाना में कंप्लेन तो कर दिया था और इसका रिजल्ट भी अच्छा मिला लेकिन मैंने उस दिन जाना की बैंक कर्मचारी अगर किसी प्रकार का बुरा बरताव करते है तो हमे रीजनल सेंटर में कंप्लेन करना चाहिए। कुछ दिनों बाद मैं किसी काम से सिलीगुड़ी गया। वहां पर मैने देखा की यू बी आई का रीजनल ऑफिस सिलीगुड़ी जैंक्शन के सामने ही है। मुझे पर्सनल लोन की जरूरत थी और मेरा बैंक मुझे लोन नहीं दे रहा था। तो मैंने सोचा की रीजनल ऑफिस में जाकर लोन के बारे में बात कर लू। मैं रीजनल ऑफिस के अंदर गया और मैनेजर से बात किया । उसने मेरे जॉब , सैलरी और अन्य एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया के बारे में पूछा और कहा की आप तो लोन के लिए एलिजिबल है आपको लोन क्यों नही मिल रहा है। मुझे उनकी बाते सुन कर लगा की बैंक लोन देना चाहती है लेकिन बैंक मैनेजर ही मुझे घुमा रहा है । रीजनल मैनेजर ने मुझे अपना कॉन्टैक्ट नंबर दिया और कहा "आप जा कर ब्रांच मैनेजर से बात कीजिए अगर कुछ प्रोब्लेम हुआ तो बैंक से ही मुझे फोन में उनसे बात करा दीजिएगा"। इसके बाद मैं फिर ब्रांच मैनेजर के पास गया और देखा की मैनेजर चेंज हो चुका है। मैं जैसे ही लोन के बारे में बात करना शुरू किया ,नया मैनेजर कहने लगा " फिलहाल तो आया हूं ,अभी मुझे सब कुछ समझने में टाइम लगेगा ,आप कुछ दिनों के बाद आइए "। मैने भी सोचा की सप्ताह भर के बाद आऊंगा । लगभग एक सप्ताह के बाद मैं फिर मैनेजर के पास गया और पर्सनल लोन के बारे में बात किया । मैनेजर ने मुझे एप्लीकेशन फॉर्म के साथ आवश्यक दस्तावेजों की एक लिस्ट दिया । बाकी सब तो ठीक था लेकिन उस फॉर्म में एक अंडरटेकिंग फॉर्म भी था जिसपर स्कूल का हेडमास्टर या स्कूल अथॉरिटी का साइन चाहिए था। जो बहुत मुस्कील था । हमारा स्कूल न्यू सेटअप स्कूल था। हेडमास्टर नही था केवल इंचार्ज था ।और मैं ही इंचार्ज था । तो अब मेरे अंडरटेकिंग फॉर्म में SI का यानी सब इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल का हस्ताक्षर चाहिए था। औरSI लोन से संबंधित किसी भी फॉर्म में हस्ताक्षर करने के लिए राजी नहीं थे। बहुत सारे शिक्षको ने इससे पहले लोन फॉर्म पर साइन कराने की कोशिश किए थे पर एस आई ने किसी के फॉर्म में भी साइन नही किया था। मैं डी आई के पास भी फॉर्म ले के गया था की शायद डी आई फॉर्म में साइन कर दे । लेकिन डी आई ने भी फॉर्म में साइन नही किया । बिना साइन के लोन लेना मुस्किल था। मैं फिर बैंक मैनेजर के पास गया और बोला की सर न ही एस आई न डी आई फॉर्म में साइन करने के लिए राजी है ।आप कोई दूसरा उपाय बताइए। मैनेजर ने कहा "अगर एस आई,डी आई साइन नही करेंगे तो लोन नहीं दे सकते है, और कोई दूसरा उपाय नहीं हैं " ।उस समय मुझे रीजनल मैनेजर के दिए हुए नंबर में फोन करना चाहिए था। लेकिन मैं नेक्स्ट डे फिर सिलीगुड़ी जाने वाला था इसीलिए फोन नहीं किया। मैने सोचा डायरेक्ट जा के बात कर लूंगा ।मैं दूसरे दिन फिर सिलीगुड़ी गया। मैं रीजनल ऑफिस के मैनेजर के चैंबर में गया तो देखा की ब्रांच मैनेजर पहले से ही वहा बैठा हुए थे। दोनो में कुछ बाते हो रही थी । मैं ब्रांच मैनेजर के पीछे जाकर खड़ा हो गया । रीजनल मैनेजर ने मुझे देखा और पूछा "क्या काम है?" मैने अपना परिचय देते हुए उनको बताया कि मेरी बात पहले भी उनसे हो चुकी है । उनको याद आ गया और पूछा की आपका ब्रांच कोन सा है? मैने कहा कि मेरा ब्रांच का नाम बनारहट है और मेरा ब्रांच मैनेजर यहीं पर बैठे हुए है। रीजनल मैनेजर पहले से ही किसी बात के लिए ब्रांच मैनेजर को डॉट रहे थे ।मैने फिर उसकी कंप्लेन कर दी। रीजनल मैनेजर और जोर से उसे फटकारने लगे । उसने पूछा " उसको लोन क्यों नहीं दे रहे है?" । ब्रांच मैनेजर ने कहा " मैने कहा था उनको अंडरटेकिंग फॉर्म में साइन लाने के लिए लेकिन वे नही ला पा रहे है"। इस पर रीजनल मैनेजर ने कहा " तो आप जाइए न ! एस आई के पास और कन्विंस कीजिए , आप किया कर रहे है इतने दिनो से ". । ब्रांच मैनेजर चुपचाप सुन रहा था । रीजनल मैनेजर ने फिर कहा " कितने स्टाफ है आपके बैंक में "? ब्रांच मैनेजर ने जवाब दिया " १३ ". इस पर रीजनल मैनेजर ने कहा" १३ ! और कुछ ब्रांच ३ या ४ स्टाफ से चल रहा है "। उसने फिर कहा " इस तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं किया जाएगा" । ऐसा लग रहा था की जैसे रीजनल मैनेजर ने ब्रांच मैनेजर पर आक्रमण ही कर दिया है। बाद में मुझे ही अच्छा नहीं लगा । ब्रांच मैनेजर की हालत देखने लायक था।मैने बीच में बोलते हुए कह दिया " एस आई, डी आई अंडरटेकिंग पर साइन नही करना चाहते "। इस पर रीजनल मैनेजर ने बहुत हि विनम्रता से कहा " देखिए ! अगर आपका अथॉरिटी अंडरटेकिंग पर साइन नहीं करता है तो हमारे बैंक के टर्म्स और कंडीशन के अनुसार आपको लोन नहीं दे सकते " । मैने कहा "ठीक है सर कोई बात नही "। सर को धन्यवाद कहते हुए मैं वहा से चला गया । लेकिन मुझे इतना पता चल गया की ब्रांच मैनेजर और स्टाफ अपनी मनमानी सिर्फ तब तक कर सकते है जब तक की कोई कस्टमर रीजनल ऑफिस में कंप्लेन न कर दे। तो दोस्तो कैसी लगी आपको मेरी ये कहानी कॉमेंट करके जरूर बताएगा । और मेरे इस ब्लॉग को सब्सक्राइब भीं कर लीजिएगा। तो गुड बाय दोस्तो ! फिर मिलेंगे मेरे अगली कहानी "शिकायत २ " में। कहानी(चाय श्रमिक का बेटा_२) (जुदाई)<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>
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