कहानी (कांयला मामा)

नमस्कार दोस्तो! स्वागत करता हूं मैं आप सबका मेरे ब्लॉग " आर्टिकल एंड स्टोरीज" में। आज मैं आप लोगो के समक्ष एक अद्भुत कहानी " कांयला मामा" पेश करने जा रहा हूं। "कांयला मामा" सुखी लकड़ी बेचने वाला एक मजदूर की कहानी है। भूटान के पहाड़ के नीचे बसा हुआ एक गांव नेपानिया कालापानी बस्ती में सुखी लकड़ी बेचने वाला एक व्यक्ति था जिसको सभी कांयला मामा कहते थे । वो रोजाना सुखी लकड़ी बेचने अपने गांव से तीन किलोमीटर दूर एक दूसरे गांव में जाया करता था। वह जिस गांव में लकड़ी बेचने जाता था उस गांव का नाम कटल गुड़ी चाय बागान था। कांयला मामा अपना लकड़ी नही बल्की दूसरो का लकड़ी बेचा करता था। इसके लिए उसे कुल लकड़ी के मूल्य का ५०% हिस्सा मिलता था। दूसरे शब्दों में ,वह जितना दाम में लकड़ी बेचता था उसका आधा हिस्सा कांयला मामा को मिलता था और आधा हिस्सा जिसका लकड़ी था उसको मिलता था। कांयला मामा बहुत मेहनती इंसान था और अपने काम से बहुत खुस था । वह साइकिल के करियर में लकड़ी ले कर जाता था । दिन में कम से कम पांच बार वह लकड़ी लेकर अपने गांव से दूसरे गांव में जाता था। कटल गुड़ी चाय बागान में एक जूनियर हाई स्कूल था । जूनियर हाई स्कूल में मध्यान्ह भोजन बनाने के लिए ईंधन की जरूरत पड़ती थी । तो उस स्कूल के प्रभारी शिक्षक कांयला मामा के काम से बहुत खुस थे । क्योंकि कायला मामा समय से लकड़ी ला देते थे और अच्छी लकड़ी भी देते थे। प्रभारी शिक्षक कांयला मामा को नकद पैसा देते थे । कभी भी पैसा बकाया नही रहता था। एक दिन में कांयला मामा तीन से चार बार लकड़ी ला देते थे। कभी 630 रुपया का बिल बनता तो कभी 840रुपया का। एक बार साइकिल में लकड़ी लाने का कांयला मामा 210रुपया लेते थे। वैसे तो 220 रुपया दाम था लेकिन कायंला मामा 10 रुपए की छूट देते थे। एक दिन प्रभारी शिक्षक किसी जरूरी काम से स्कूल छुट्टी लिए थे और स्कूल नही गए थे। उसी दिन कांयला मामा लकड़ी लेकर स्कूल पहुंचते हैं । प्रभारी शिक्षक नही थे तो कांयला मामा ने एक सहायक शिक्षक से लकड़ी की बात की । सहायक शिक्षक ने कहा " ठीक हैं लकड़ी दे दीजिए मैं पैसा दे दूंगा "। प्रभारी शिक्षक के अनुपस्थिति में सहायक शिक्षक ही स्कूल संभालते थे। कांयला मामा ने उस दिन चार बार लकड़ी ला दिया । चार बार लकड़ी लाने का बिल हुआ ८४० रुपया। उस सहायक शिक्षक के पास छुट्टा नही था तो उसने १०००रुपए कांयला मामा को दिए और कहा " १००० रुपए आप रखिए और मुझे १६० रुपए घुमा दीजिएगा"। कांयला मामा ने कहा "ठीक है आप मुझसे १६० रुपए पाएंगे "। दूसरे दिन प्रभारी शिक्षक स्कूल गए । सहायक शिक्षक ने प्रभारी शिक्षक से कहा "कांयला मामा ने चार बार लकड़ी ला दिया है और छुट्टा नही होने की वजह से मैने उसे १००० रुपए दिए हैं और मैं कांयला मामा से १६० रुपए पाता हूं। प्रभारी शिक्षक ने १००० रुपए सहायक शिक्षक को दिए और कहा " ये १००० रुपए आप रख लीजिए , मैं कांयला मामा से १६० रुपए ले लूंगा । उस दिन कांयला मामा लकड़ी लेकर नही आया । मध्यान्ह भोजन बच्चे खा चुके थे । लगभग ढ़ाई बजे का समय था।प्रभारी शिक्षक और सहायक शिक्षक बात कर रहे थे। उसी समय एक छात्रा ने प्रभारी शिक्षक को याद दिलाया की स्कूल में झाड़ू नही हैं । मंगलवार का दिन था और सामने हाट लगा हुआ था। प्रभारी शिक्षक ने उस छात्रा को झाड़ू खरीदने के लिए २००रुपया देना चाहा। लेकिन प्रभारी शिक्षक के पर्स में केवल ५०० रुपए के कुछ नोट थे। छुट्टा नही था तो प्रभारी शिक्षक ने सहायक शिक्षक से २०० रुपए उधार लेकर उस छात्रा को झाड़ू लाने के लिए दे दिया। अब वह सहायक शिक्षक प्रभारी शिक्षक से २०० रुपया पता था।लेकिन प्रभारी शिक्षक कांयला मामा से १६० रुपया पता है। कांयला मामा को यह बात पता नही था की प्रभारी शिक्षक ने सहायक शिक्षक को १००० रुपए दे दीए हैं और सहायक शिक्षक नही बल्की प्रभारी शिक्षक अब कांयला मामा से १६० रुपया पाता है। कांयला मामा को यह बात भी पता नही था की सहायक शिक्षक प्रभारी शिक्षक से २०० रुपया पाता है। दूसरे दिन कांयला मामा ने दो बार लकड़ी ला दिया । वह और लकड़ी लाने वाला था लेकिन प्रभारी शिक्षक ने माना कर दिया क्योंकि प्रभारी शिक्षक के पास पैसे कम थे। कांयला मामा दो बार लकड़ी देने के बाद बाद प्रभारी शिक्षक से पैसे लेने गया । सहायक शिक्षक भी सामने खड़ा था। प्रभारी शिक्षक को ४२० रुपए में से १६० रुपए काट कर २६० रुपए कांयला मामा को देने थे। प्रभारी शिक्षक ने पर्स से पैसा निकाल कर देना चाहा । उसने देखा की इस बार भी उसके पास छुट्टे नही थे। उसने पांच सौ रुपया निकाला और कांयला मामा को दिया और कहा " ये पांच सौ रुपए आप लीजिए और आज के आपके ४२० रुपए हुए और आप मुझे ४२० रुपया काट कर ८० रुपए दीजिए और पहले का १६० रुपया भी दीजिए"। सहायक शिक्षक ने भी कहा "१६० पहले का और ८० रुपया अभी का , मिलाकर हुए २४० रुपया"। कांयला मामा ने अपने जेब से पैसे निकाले उसके पास २०० रुपए थे। उसके पास ४० रूपये नही थे। प्रभारी शिक्षक ने कांयला मामा को ५००रुपए दिए और २००रुपए लेते हुए कहा " ४० रुपए बाद में दे दीजिएगा"। ठीक उसी समय प्रभारी शिक्षक ने सहायक शिक्षक को २०० रुपए दे दीए क्योंकि सहायक शिक्षक प्रभारी शिक्षक से २००रुपए झाड़ू के पाते थे। कांयला मामा उलझन में पड़ गया। उसे लगा की सहायक शिक्षक तो उससे १६० रुपए पाता था तो २०० रुपए क्यों लिया। उसे हिसाब समझ में नहीं आया । उसे लगा की उसके साथ धोखा हुआ है। वह फिर से प्रभारी शिक्षक से पूछने लगा " सर! मुझे समझ में नहीं आया ,मुझे अगर बुरा लगता है तो मैं किसी से बात भी नहीं करता हूं, अगर मुझे अपना पैसा नही मिला तो मैं फिर कभी भी लकड़ी नही लाऊंगा"। सहायक शिक्षक उसे समझने की कोशिश कर रहा था। लेकिन कांयला मामा को समझ नही आ रहा था। प्रभारी शिक्षक को समझ में आ गया की कांयला मामा की उलझन किया हैं । प्रभारी शिक्षक ने कहा " कांयला मामा! सहायक शिक्षक मुझसे २०० रुपया पाते थे इसीलिए मैंने उसे २०० रुपए दिए"। यह बात सुनते ही कांयला मामा गुस्से में आ गए और सीधे अपने साइकिल की ओर चल दिए। प्रभारी शिक्षक ने आवाज लगाई "मामा , मामा"। लेकिन कांयला मामा एक नही सुने और अपने साइकिल में यह कहते हुए वहां से चल दिए की अब वह लकड़ी नही लायेगा। कांयला मामा के दिमाग में किया चल रहा था यह बात न ही प्रभारी शिक्षक को समझ आई और न ही सहायक शिक्षक को। लेकिन उसके बाद कांयला मामा ने स्कूल में लकड़ी लाना बंद कर दिया। दोस्तो कभी कभी हमलोगो को मौका ही नही मिल पाता हैं यह समझने की की सामने वाले के मन में किया चल रहा हैं । कहानी(चाय श्रमिक का बेटा_२) (जुदाई)<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>

11/23/20220 min read

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