कहानी (चाय श्रमिक का बेटा)

नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आप सबका मेरे इस ब्लॉग में जिसका नाम है आर्टिकल एंड स्टोरीज। आज मैं आपलोगो के समक्ष एक चाय श्रमिक के बेटे की संघर्ष की कहानी पेश करने जा रहा हूं। उम्मीद है आप सबको ये कहानी पसंद आयेगी। ये कहानी है चाय बागान में रहने वाला एक लड़के की जिसने कुछ कर दिखाने की सपने देखे थे। पश्चिम बंगाल की डूयर्स में रहने वाले चाय श्रमिक का बेटा जब एक छोटा सा भी सपना देखता है न तो उसे पूरा करने के लिए बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह कहानी आज से लगभग ३५ साल पहले शुरू हुई जब लोगो के हाथों में मोबाइल फोन नही थे। और लोग अपने परिजनों को पत्र के माध्यम से संदेश भेजा करते थे। चाय श्रमिको की दैनिक मजदूरी ५० रुपए थी । अधिकतर चाय श्रमिक अनपढ़ या कम पढ़े लिखे होते थे और शराब पीना तो जैसे मानो रोज की ही बात थी। बच्चो को पढ़ाना _लिखाना और एक काबिल इंसान बनाना उनके सोच से परे थे। ऐसी परिस्थिति में जब चाय श्रमिक का एक बेटा कुछ कर के दिखाना चाहे तो उसे कितने ही सारे मुस्किलो का सामना करना पड़ता है यह हम इस कहानी के माध्यम से जानेंगे। यह कहानी है यश कुमार की। यश कुमार के पिता बहुत शराब पीते थे। घर में शराब पी कर आना और अपने पत्नी से लड़ना झगड़ना तो जैसे उनका रोज का काम था। वह अपने पत्नी को मारता पीटता भी था। यश अपने सामने अपने मां को पिटते देख बहुत दुखी होता था और उसे अपने पिता पर गुस्सा भी आता था लेकिन किया करता वो अभी बहुत छोटा था। यश से बड़ी एक बहन थी और उससे छोटे एक भाई और एक बहन थे। यश के परिवार में कुल ६ लोग थे। यश के परिवार में खाने पीने की बहुत समस्या थी। यश के पिताजी जो वेतन पाते थे उसमे से आधा तो शराब में उड़ा देते थे। बाकी बचे पैसों से हफ्ते भर का पूरा राशन भी नही आ पता था। दो दिन तो अच्छे से खा लेते थे। लेकिन तीसरे दिन से खाने में से सब्जी गायब हो जाता था। दाल खाना तो जैसे एक सपना था। अगर कोई अतिथि आ जाता तो यश के पिता को छोड़कर सबको टेंशन हो जाती थी। चाय बनाकर देने के लिए चाय पत्ती तो होती थी लेकिन शक्कर नही होते थे। शक्कर खरीदने के लिए दो रुपए पड़ोसी से उधार मांगने पड़ते थे। अतिथि को एक दिन रुकने के लिए भी नही बोला जाता था। जितने भी अतिथि आते थे सभी यश के चाचा के घर में रहते थे ।जब यश आठवीं कक्षा में था तब उसे पहली बार अपने अंदर छिपी प्रतिभा का पता चला । सातवी कक्षा तक उसके मार्क्स बहुत कम आते थे। वह पढ़ता तो था लेकिन सिर्फ पास होने के लिए। लेकिन अचानक उसे ऐहसास होता है की वह भी एक अच्छा छात्र बन सकता है। यह बात उसने अपने बड़ी बहन हेमलता को बताई। उसने कहा "दीदी !इस बार मैं भी डिवीजन ला के दिखाऊंगा"। दीदी ने निराशाजनक उत्तर दिया " तुमसे हो गया"। यश ने आगे कुछ नहीं कहा । उसे लगा की जब वह कर के दिखायेगा तो उसके दीदी को भी मानना पड़ेगा। आठवीं कक्षा का अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम सामने आया । गणित में यश का अच्छा मार्क्स आया था। उसने ३० अंक प्राप्त किए थे । कक्षा में सभी यश के मार्क्स को देख कर हैरान हो गए थे क्योंकि यश पहली बार एक अच्छा छात्र के रूप में सबके सामने आया । गणित की शिक्षक ने सबके सामने यश की प्रसंशा की और उसका हौसला बढ़ाया । इसके बाद इतिहास के शिक्षक ने भी यश का हौसला बढ़ाया। इतिहास में यश के लाए हुए अच्छे मार्क्स को देखते हुए इतिहास के शिक्षक ने कहा "मनदीप तुम अपनी पढ़ाई तेज कर दो नही तो यश तुम्हारा अस्थान ले लेगा और पन्नालाल तुम इस कोशिश में लग जाओ की तुम्हे कोई पार न कर सके, अब कक्षा में एक नया प्रतिभा का आगमन हो चुका है"। इतिहास के शिक्षक का यह वक्तव्य सुन कर यश का हौसला इस कदर बढ़ा की अब यश रात दिन एक करके पढ़ने लगा। वार्षिक परीक्षा में डिविजन लाने की यश ने पूरी कोशिश की लेकिन नही ला सका। यश इस बात से खुस था की यश के सभी विषय में बहुत अच्छे मार्क्स थे और गणित में तो उसके मार्क्स सर्वाधिक थे। दूसरी तरफ यश का घर का हालत खराब होते जा रहे थे। यश को पढ़ाई के साथ साथ काम पर भी जाना पड़ा। यश ने पहली बार पत्थर तोड़ने का काम किया। कड़कती धूप में नदी के घटी के बीचों बीच बैठ कर यश पत्थर तोड़ता था। उसे सौ रुपए कमाने के लिए हप्ता भर लग जाते थे। वह यह काम गर्मियों की छुट्टी में और पूजा की छुट्टी में किया करता था। इसके बाद यश जब नवमी कक्षा में पहुंचा तो सभी को पता चल चुका था की यश का गणित में बहुत अच्छा पकड़ है। कक्षा में जब गणित के शिक्षक कोई सवाल हल करने देता तो सबसे पहले यश ही सवाल हल करके शिक्षक को दिखाता था। सभी शिक्षक यश को पहचानने लगे। गणित में यश को चुनौती देने वाला अब कोई छात्र नही था। नवमी कक्षा का परिणाम सामने आया और यश को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। यश का आत्मविश्वास धीरे धीरे बढ़ने लगा। यश पढ़ाई में बहुत मेहनत करने लगा । और साथ साथ मजदूरी भी करने लगा। नवमी कक्षा के गर्मियों की छुट्टी में यश भूटान की पहाड़ों में माइनिंग करने जाता था। पहली बार जब यश माइनिंग करने गया था तब ठेकेदार ने यह कहकर काम से निकाल दिया की वह तो अभी बच्चा है और काम नहीं कर सकता। यश फिर पत्थर तोड़ने चला गया। जब यश दसवी कक्षा में पहुंचा तो यश के घर के हालात और खराब हो गए। यश जिस चाय बागान में रहता था वह चाय बागान ही बंद हो गया। चाय बागान बंद होते ही यश के पिता काम के तलाश में बाहर चले गए और बाहर जाकर लापता हो गए। यश अपने मां और भाई बहनों के साथ पत्थर तोड़ने जाने लगा। यश पत्थर तोड़ने में माहिर हो गया था और सबसे ज्यादा वही पत्थर तोड़ता था। घर में कमाने वाले कोई नही थे । घर का खर्चा चलाना मुस्किल हो गया था । ऐसी परिस्थिति में यश के लिए पढ़ाई करना बहुत मुस्कील हो गया था। फिर भी यश ने ऐसी कठिन परिस्थिति में अपना पढ़ाई जारी रखा। यश पढ़ना चाहता था और उसे पता था की माध्यमिक परीक्षा पास करने के बाद उसकी समस्या कम हो जाएगी। क्योंकि वह बच्चो को ट्यूशन पढ़ाकर पैसा कमा सकता था। उसका गणित में अच्छी पकड़ थी। और गणित की ट्यूशन की मांग हमेशा रहती है। वह मन लगाकर दिन रात पढ़ने लगा। नवंबर महीना में सेंट अप की परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ । अब उसे तीन महीना बाद माध्यमिक परीक्षा में बैठना था। तीन महीना उसके पास था। उसने सोचा की दो महीने काम किया जा सकता है और जब एक महीना बचा होगा तब माध्यमिक की परीक्षा की तैयारी करेगा। वह फिर भूटान की पहाड़ों में माइनिंग करने जाने लगा। एक महीना काम किया और बीमार पड़ गया । वह डायरिया से ग्रस्त हो गया था। जितने भी नुस्खे उसकी मां जानती थी उसके मां ने आजमाया । लेकिन यश ठीक नही हो रहा था। डेढ़ महीने बाद यश की परीक्षा थी। यश रोज भगवान से प्रार्थना करता की किसी तरह उसकी बीमारी ठीक हो जाए । डॉक्टर दिखाने के लिए पैसे नही थे। भगवान से प्रार्थना के अलावा और कोई रास्ता भी नही था। ठीक उसी समय पड़ोस के एक व्यक्ति ने देखा की यश की हालत बहुत खराब है। वह था तो एक शराबी लेकिन ऐक डॉक्टर को लेकर आया और यश की ईलाज करवाया। तब यश ठीक हुआ । यश के पास उस शराबी दादा को धन्यवाद कहने के लिए शब्द नही थे। उसके बाद यश ने अंतिम एक महीना रात दिन एक कर दिए । उसने बहुत मेहनत किया । यू तो यश ने साल भर पढ़ाई की थी इसीलिए उसे तैयारी करने में दिक्कत नही हुई। पूरी तैयारी के साथ यश परीक्षा में बैठा। अब परिणाम आने में दो महीना बचे हुए थे। यश ने इन दो महीनो में फिर से मजदूरी की। अलीपुर से सिलीगुड़ी तक बड़ी लेन बन रही थी। यश ने वहां पर काम किया। फिर यश का परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ। यश ने अपने स्कूल में सबसे अच्छा अंक प्राप्त किया था। माध्यमिक में उसका प्रथम स्थान था। उस समय सभी ने यश की बहुत प्रशंसा की । साइंस ग्रुप में यश का सबसे अच्छा मार्क्स था। उसका मन था साइंस लेकर पढ़ने का लेकिन घर के हालात को देखते हुए यश ने आर्ट्स लेकर पढ़ने का फैसला किया। उच्च माध्यमिक की पढ़ाई के लिए यश अपने बुआ के घर चला गया । यश की बुआ जिस बागान में रहती थी वह बागान अच्छा चल रहा था और वहां से एक स्कूल बस भी जाती थी। इसीलिए यश को बस किराया की चिंता करने की जरूरत नहीं थी। यश ने ट्यूशन पढ़ाना सुरु कर दिया था। इस पैसे से वो अपनी पढ़ाई का पूरा खर्च तो निकाल ही लेता था और साथ में अपने मां को भी कुछ पैसे दे आता था। आर्ट्स लेने के कारण यश की रुचि पढ़ाई में अब कम हो चुकी थी । उसका पसंदिता विषय गणित अब नही रहा । वह अंग्रेजी में अच्छा करने की कोशिश करने लगा। वह अंग्रेजी की ट्यूशन भी लेता था। फिर भी यश हायर सेकंडरी में अच्छा मार्क्स नही ला सका । इसके पीछे दो वजह थे। पहला यह की यश को किसी भी विषय में खास रुचि नहीं थी और दूसरा वजह थी छबिता नाम की एक लड़की। उच्च माध्यमिक के शुरुवात में यश के नए नए दोस्त बने । कक्षा के सभी लोगो से यश की दोस्ती हो गई थी। यहां पर लड़के लड़की सभी यश के दोस्त थे। यश इन सब बातों से बहुत खुस था। ग्यारहबी कक्षा में दाखिला लिया हुआ लगभग एक महीने हो चुके थे।एक दिन यश अपने दोस्तों के साथ बस से उतर कर स्कूल की ओर जा रहा था। स्कूल गेट के कुछ ही दूरी पर यश की नजर एक लड़की पर पड़ता है। वो लड़की यश को देख रही थी। यश ने फिर खुद को संभाला और सोचने लगा की इतना सुंदर लड़की यश को कैसे देख सकती है।यश ने सोचा की कुछ और बात है।यश थोड़े देर के लिए रुक गया और वो लड़की आगे बढ़ गई। थोड़ी देर के बाद उस लड़की ने पलट कर फिर देखा । यश को यकीन हो गया की वह लड़की यश को ही देख रही थी। एक अजीब एहसास यश के मन को लगा। राष्ट्रगान का समय था। यश ने राष्ट्रगान में हिस्सा लिया और कक्षा के अंदर गया । वह मन ही मन उस लड़की के बारे में सोच रहा था। इतने में यश ने देखा की वो लड़की तो यश के ही कक्षा में बैठी है। यश का तो खुसी का ठिकाना ही नहीं रहा । वो लड़की यश को पलट पलट कर देखने लगी। यश को भी बहुत अच्छा लग रहा था। स्कूल जब छुट्टी होता तो यश छबिता के पीछे पीछे बस स्टैंड तक चला जाता । इस तरह यश और छबिता एक दूसरे के करीब आ रहे थे। यश अब दिन रात उसी के बारे सोचता और उसकी ही बाते करता । स्कूल छुट्टी होता और छबिता चली जाती तो यश बेचैन हो जाता था। फिर यश दूसरा दिन का इंतजार करता की कब सुबह के दस बजेंगे और यश स्कूल जायेगा। कब वह स्कूल पहुंचेगा और छबिता से नज़रे मिलाएगा। यश की बचैनी बढ़ती ही जा रही थी । लेकिन वह छबिता से अपना दिल की बात कहने से डरता था। धीरे धीरे क्लास के सभी दोस्तों को यश और छबिता की केमिस्ट्री पता चलने लगी। यश के एक दोस्त ने यश से कहा की किया बात है तेरे और छबिता के बीच कुछ चल रहा है किया। यश की चोरी पकड़ी गई थी और छिपाने के लिए कुछ भी नही था। यश ने कहा की अभी तक उसने प्रपोज नही किया है।तो उस दोस्त ने यश से कहा "फिर !चलो हम मीटिंग फिक्स करवाते है,तुम प्रपोज कर देना"। यश ने भी छबिता से अपने दिल की बात कहने का मन बना लिया था।यश छबिता से मिलता है और अपना दिल की बात बता देता है। छबिता का जवाब आता है की वो यश से प्यार नहीं करती बल्कि एक अच्छा दोस्त समझती है। छबिता का पहले से ही एक ब्वॉयफ्रेंड था। यह बात जानकर यश बहुत दुखी होता है और उसका दिल टूट जाता है। अंत में उच्च माध्यमिक की परीक्षा होती है और यश दो प्रतिशत के लिए प्रथम स्थान नहीं ला पता । उसके बाद यश अपना घर चला आता है। यश ने फैसला किया कि अब वो घर से ही कॉलेज आना जाना करेगा। दो साल ट्यूशन पढ़ाने के बाद उसका काफी अनुभव हो चुका था। उसने कॉलेज ज्वाइन किया और ट्यूशन भी पढ़ाना सुरु कर दिया । कुछ दिन तो उसने घर पर ही ट्यूशन पढ़ाया लेकिन घर के आस पास के सभी जान पहचान या अपने लोग थे। उसे फीस नहीं मिलती थी। उसने सोचा की कहीं दूर ट्यूशन पढ़ाना पड़ेगा। तभी एक दोस्त ने यश को अपने घर आकर अपने बहन को ट्यूशन पढ़ने का प्रस्ताव दिया। उसने कहा की वो और भी छात्र खोज देगा। यश को ठीक लगा । लेकिन यह जगह यश के घर से लगभग ६_७ किलोमीटर दूर था। यश कॉलेज से आता और सात किलोमीटर की दूरी तय करके साइकिल से ट्यूशन पढ़ाने जाता था। यश को आते आते कभी साढ़े सात तो कभी आठ बज जाते थे। फिर यश अपना पढ़ाई करता । कुछ महीने ऐसा ही चला । उसके बाद अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले कुछ बच्चे को पढ़ाने का प्रस्ताव आया । यह दूरी घर से २_३ किलोमीटर की थी। यश ने पहले वाले ट्यूशन पढ़ाना छोड़ दिया और अब अंग्रेजी मीडियम के बच्चो को पढ़ाने लगा। बच्चे तो तीन ही थे लेकिन महीने के हजार रुपए मिल जाते थे। बहुत जल्द यश को हिंदी मीडियम में पढ़ने वाले छात्र भी मिल गए। यश अब दो बैच पढ़ाता था । तीन से पांच अंग्रेजी माध्यम के बच्चो को और पांच से सात हिंदी माध्यम के बच्चो को पढ़ाने लगा । हिंदी माध्यम के बचे ज्यादा थे लेकिन फीस कम थी। दूसरे बैच से लगभग दो हजार की आमदनी हो जाती थीं। इस तरह यश का घर खर्च भी निकल जाता था और अपना पढ़ाई का खर्च भी। यश के भाई बहन भी अब बड़े हो चुके थे और ऊंचे श्रेणी में पढ़ते थे। यश को उनका भी पढ़ाई का खर्च निकालना पड़ता था। इस तरह यश पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ता चला जा रहा था। अब तक यश ने अपना लक्ष्य तय कर लिया था। उसने संकल्प लिया था की स्नातक की पढ़ाई खत्म होते ही स्कूल सर्विस कमीशन की परीक्षा में बैठेगा । यश की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रही थी। क्योंकि उसके घर में कमाने वाला कोई नहीं था। उसके पिताजी काम की तलाश में बाहर गए हुए थे और दो साल में एक बार पैसे भिजवाए। उसने दो साल में एक बार ५००रुपए भिजवाए और जब घर आए तो १०००रुपए और कुछ कपड़े ले कर आए हुए थे। यश को लगा की उसके पापा दुनिया घूम लिए और अब अपने जिम्मेदारियों को समझ गए है। लेकिन ऐसी बात नहीं थी। बल्की उसकी सोच और भी खराब हो चुकी थी। अपने बच्चो के सपनो को समझना तो दूर वो अब अपने बेटे से ही उम्मीद लगाए बैठे थे। कॉलेज के अंतिम वर्ष में यश को एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाने का मौका मिला । सैलरी तो ज्यादा नही लेकिन वहां पर यश को सीखने को बहुत कुछ मिलता। सैलरी सिर्फ १०००रुपए था। यश ने दो साल कॉलेज में अंग्रेजी में पढ़ा और लिखा था । इसका लाभ उसे अंग्रेजी माध्यम में बच्चो को पढ़ाने में मिला । शुरू में तो उसे स्पीकिंग नही आती थी लेकिन धीरे धीरे अंग्रेजी बोलना सीख लिया। एस एस सी की परीक्षा में अंग्रेजी में लिखना होता था। और इसके लिए अंग्रेजी अच्छा होना जरूरी था। यश ने अंग्रजी सुधारने के लिए बहुत मेहनत किया। वह स्नातक के सभी विषय अंग्रेजी में पढ़ता और लिखता था। बच्चो को अंग्रेजी पढ़ता था । इस तरह से यश की अंग्रेजी इंप्रूव हुई । इतना ही नहीं यश सुबह सात बजे घर से निकलता था और पांच किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय करके स्कूल पहुंचता था। एक बजे तक स्कूल में पढ़ाने के बाद दो बजे तक घर लौट आता था। दो बजे दोपहर का भोजन करके फिर तीन बजे ट्यूशन पढ़ाने निकल पड़ता था। तीन से पांच अंग्रेजी माध्यम के बच्चो को पढ़ाकर पांच से सात हिंदी माध्यम के बच्चो को पढ़ाता था। घर पहुंचता था आठ बजे। फिर अपनी पढ़ाई करता था। पढ़ते पढ़ते रात के कभी १२ बजते थे या कभी २. इस तरह दिमाग में ज्यादा दबाव पड़ते रहने के कारण धीरे धीरे यश बीमार भी पड़ता जा रहा था। महीना में एक या दो बार यश को बीमार पड़ना जैसे आम बात हो गई थी। इसके बाद जब यश का रिजल्ट आया तो देखा की केवल ४७% ही अंक मिले है। यश को अपने पढ़ाई पर घमंड था। उसे तो लगता था की वह बहुत अच्छा छात्र है और 60% से ऊपर ही मार्क्स लायेगा। लेकिन अपने मार्क्स को देखकर यश का घमंड टूटा और स्वीकार किया किया की अब उसकी पढ़ाई कमजोर हो चुकी है। फिर भी उन्होंने हार नही मानी और अपना प्रयास जारी रखा। उसने ठान लिया था की वो एस एस सी की परीक्षा पास करके ही रहेगा। 2008 में स्नातक की पढ़ाई पास करने के बाद पहली बार एस एस सी की परीक्षा में बैठा। लेकिन तैयारी नही होने के कारण पास न कर सका ।स्कूल और दो बैच ट्यूशन पढ़ाकर यश के परिवार का गुजारा अच्छा ही चल रहा था। 2009 में यश का भाई बहुत बीमार हो गया था । डॉक्टर तो यश ने दिखाया था लेकिन देर हो चुकी थी। डॉक्टर ने जो दवाई दी थी उससे ठीक नही हुआ। दुबारा जब यश अपने भाई को लेकर डॉक्टर के पास गया तो डॉक्टर ने कहा इसे जिला अस्पताल ले जाना पड़ेगा इसका ब्लड बहुत कम है । वहां पर ब्लड दिलाना पड़ेगा। यश के पास जिला अस्पताल ले जाने के लिए पैसे भी नहीं थे। लेकिन ड्राइवर जान पहचान का था इसीलिए यश ने ड्राइवर से कहा की वो बाद में पैसा दे देगा। ड्राइवर राजी हो गया। यश अपने भाई को जिला अस्पताल लेकर गया। यश की भाई की हालत बहुत ही खराब थी। जिला अस्पताल में यश ने अपने भाई को एक दिन रखा । वहा पर डॉक्टर ने जल्द से जल्द ब्लड की व्यवस्था करने को कहा। लेकिन ब्लड बैंक में o+ ब्लड नही होने के कारण यश ब्लड नही ला सका। डॉक्टर ने यश से कहा की अगर २४ घंटा के अंदर ब्लड न दिया जाए तो पेशेंट नही बचेगा। और डॉक्टर ने वहा से मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर भी कर दिया। यह बात सुन कर यश बहुत घबरा गया । जल्द से जल्द यश ने डिस्चार्ज का पेपर लिया और वहां से मेडिकल कॉलेज के लिए रवाना हो गया। यश एंबुलेंस में अपने भाई को ले जाते समय बहुत भाउक हो गया था। उसके आंखो से अंशु टपक रहे थे। यश के भाई ने यश को हौसला दिया और कहा " मत रोना ,मत रोना"। यश पहली बार शहर जा रहा था। उसे शहर और मेडिकल कॉलेज के बारे में कुछ भी पता नही था। फिर भी उसके दिमाग में एक ही बात चल रहा था की उसे अपने भाई को बचाना है। मेडिकल कॉलेज में अपने भाई को भर्ती कराया । वहां पर यश को अपने भाई को लेकर १५ दिन रहना पड़ा। यश ने अंत में अपने भाई को बचा ही लिया। उसने ४ यूनिट ब्लड की व्यवस्था किया। अपने दोस्तो से पैसे के लिए हेल्प भी मांगे । यश के कुछ रिश्तेदारों ने भी यश की मदद की । इस तरह यश अपने भाई को सही सलामत घर लेकर आया। इसके बाद यश ने फिर से पढ़ाई में ध्यान केंद्रित किया। २००९ में एक बार फिर उसने एस एस सी की परीक्षा दिया। इस बार भी वो सफल नहीं हो पाया। इसके बाद २०१० का साल यश के लिए बहुत ही कठिन था। वो जिस अंग्रेजी स्कूल में पढ़ता था वहां से उसे निकाल दिया गया। वो अपने दोस्त के साथ मिल कर ट्यूशन पढ़ाता था। उस दोस्त ने आठवीं कक्षा की एक छात्रा से प्रेम बिबाह कर लिया। इस घटना से यश के ट्यूशन को काफी छती पहुंची । अब यश रोजगार का दूसरा विकल्प ढूंढने लगा। उसी समय जिस उच्च विद्यालय से उसने माध्यमिक पास किया था वहां पर भूगोल विषय के शिक्षक का पद खाली था। यह नियुक्ति सर्व शिक्षा मिशन के द्वारा पार्श्व शिक्षक के रूप में होती थी। वहां पर भूगोल विषय के दो पद खाली थे । स्नातक स्तर पर यश का भूगोल भी था। यश इसके लिए साक्षात्कार में उपस्थित हुआ। भूगोल विषय के लिए दो लोगों ने आवेदन किया था। स्कूल जिस ग्राम पंचायत के अंतर्गत पड़ता था वहां से केवल दो लोग ही इस पद के लिए योग्य थे। यश ने राहत की सांस ली । उसने सोचा की यह जॉब तो उसे मिल ही जायेगा और उसकी घर की स्थिति में सुधार आएगा और वह निश्चित होकर एस एस सी की तैयारी कर पाएगा। लेकिन इसकी नियुक्ति में देरी हो रही थी। और यश बेकार बैठा हुआ था। आमदनी न होने के कारण यश के घर की हालत दिन प्रतिदिन खराब ही होती जा रही थी। इसीलिए यश ने शिक्षक के रूप में एक मिशनरी स्कूल ज्वाइन कर लिया। वहां पर सैलरी केवल मात्र १८००रुपए थे। यश के पास दूसरा और कोई विकल्प नहीं था । वह उस मिशनरी स्कूल में काम करने लगा। दो महीने ही काम किए थे की वहां के प्रधानाध्यापक को यह बात पता चल गया की यश पार्श्व शिक्षक के रूप में दूसरा स्कूल ज्वाइन करने वाला है। प्रधानाध्यापक को इस बात से परेशानी थी। उसने यश को स्कूल से निकाल दिया। यश ने प्रधानाध्यापक से विनती की की उसे स्कूल से न निकले नही तो उसका घर खर्च चलाना मुस्किल हो जायेगा। लेकिन प्रधानाध्यापक ने उसकी एक न सुनी और कहा की यह उसका नही बल्की कमिटी का निर्णय है। यश को उस स्कूल से भी निकलना पड़ा। इसके बाद यश ने फिर ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। पार्श्व शिक्षक की नियुक्ति में देरी हो रही थी। यश ट्यूशन पढ़ाने के लिए अपने घर से दो किलोमीटर दूर साइकिल में जाकर वहां से बस पकड़कर और ६ किलोमीटर दूर जाता था। सुरु में तो बस से जाने के लिए किराया नहीं होता था। वह सुबह सात बजे घर से साइकिल में निकलता था। दो किलोमीटर साइकिल चलाकर बस स्टैंड तक पहुंचता था। बस का किराया नहीं होने के कारण वह कभी किसी मोटरसाइकिल से लिफ्ट मांगता था तो कभी ट्रक से। कभी कभी तो उसे न ही ट्रक मिलते थे और न मोटरसाइकिल। मजबूरन उसे साइकिल से ही और ६ किलोमीटर की दूरी तय करना पड़ता था। लगभग दो से तीन महीने ऐसे ही संघर्ष करने के बाद एक दिन खबर आया की पार्श्व शिक्षक का पैनल (सर्व शिक्षा मिशन के अंतर्गत होने वाली भर्ती)रद्ध हो गया।दूसरे विषय के योग्य उम्मीदवारों ने यश को फोन किया की स्कूल (जहां पार्श्व शिक्षक की भर्ती होनी थी) आ जाए। ट्यूशन खतम करके यश सीधे स्कूल पहुंचा। वहां जाकर देखा की लोगो ने प्रधानधायपक के खिलाप विद्रोह कर दिया है। यश भी नियुक्ति में देरी होने के लेकर काफी परेशान था। जाते ही उन्होंने प्रधानाध्यापक से झगड़ना शुरू कर दिया। बाद में समर्थको ने प्रधानाध्यापक को रूम में ही बंद कर दिया। अन्य उम्मीदवारों ने यश से कहा की प्रधानाध्यापक की स्वार्थ भावना के कारण ऐसा हुआ है। जब प्रधानाध्यापक ने देखा की उसका खुद के लोगो का नियुक्ति होने की संभावना कम तो उसने प्रक्रिया धीमी कर दी थी। यश और अन्य योग्य उम्मीदवारों ने फैसला किया की जब तक उनकी नियुक्ति नहीं होती वे भूख हड़ताल पर बैठेंगे। यश अब तक जिंदगी से बहुत परेशान हो चुका था। वह भूख हड़ताल में बैठ गया। पहली बार भूख हड़ताल में बैठा था। उसे आंदोलन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। उसके साथ भूख हड़ताल में बैठने वाले और तीन लोग थे। उनमें से एक का नाम गुल मोहमद था। गुल मोहम्मद को राजनीति के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी थी क्योंकि उसके परिवार में कुछ लोग राजनीति से जुड़े हुए थे। उनलोगो ने तीन दिनों तक भूख हड़ताल किया। इन तीन दिनों में यश के साथ बहुत कुछ हुआ लेकिन नियुक्ति नहीं मिली। यश को तीन दिनों तक भूखा रहना पड़ा। गांव में लोगो ने यश की बहुत निंदा की। यश को अपने यश को देखने के लिए तक नही आए। अखबार में पहली बार यश का नाम आया। अखबार वालों ने यश के विरोध में यहां तक लिख दिया "नौकरी नहीं मिली तो चले भूख हड़ताल पर"। शारीरिक अवस्था खराब होने के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। यश के खिलाप थाना में एफ आई आर भी दर्ज हुआ। तीन दिनों तक भूखा रहने के कारण यश की स्वास्थ पर बहुत बुरा असर पड़ा। उच्च अधिकारियों ने आश्वासन दिया की बहुत ही जल्द उनलोगो की नियुक्ति हो जायेगी। अब यश के हाथो में जैसे कुछ नही बचा था। यश के पिता शराबी और निकम्मा बने रहे। मिशनरी स्कूल से भी निकल चुके थे और बेरोजगार हो गए थे। यश की मां घर में बैठी रहती थी और दिन रात चिंता करती थी। भाई और बहन भी पढ़ना चाहते थे और अपने भैया से उम्मीद लगाए बैठे थे। घर में खाने पीने के लिए भी तकलीफ़ थी।घर का माहोल बहुत खराब हो चुका था। घर के लोगो में बातचीत बहुत कम होती थी। घर घर नही बल्की चिंता और दुख का गुफा बन चुका था। यश का शरीर चिंता , दुख , संघर्ष और बीमारी से खोखली होती जा रही थी। यश की मां का कहना था की यश कमाने के लिए बाहर चले जाए। उनके भाई बहनों का कहना था की भैया ने बहुत पढ़ लिया और अब उसको अपने भाई बहन के बारे में सोचना चाहिए। परिस्थिति इतनी खराब हो गई थी की यश का दिमागी हालत बिलकुल भी ठीक नही था। वो रात दिन सोच में डूबा रहता था। गांव में भी लोग यश के दुबले पतले शरीर पर तरह तरह के टिप्पणी किया करते थे। गांव के लोगो का मानना था की पढ़ लिख कर नौकरी नहीं मिलता। अब यश के मन में नकारात्मक सोच ने जगह बना लिया था। एक दिन यश ट्यूशन पढ़ा रहा था। इतने में एक लड़की जो यश की अच्छी दोस्त थी वहां आती है। उसका परीक्षा था और यश को साथ ले जाने आई थी। यश का दिमागी हालत बिलकुल ठीक नही था। वो सोच रहा था की अगर वो आत्महत्या कर लेता है तो फिर सारी समस्या खत्म हो जाएगी।उसके दोस्त ने जबरदस्ती उसे अपने साथ ले गया। बस में बैठा हुआ यश बहुत परेशान था। उसी समय उस लड़की ने कागज की पुड़िया निकल कर कुछ खाई। यश ने पूछा "ये किया हैं"। लड़की ने कहा "गुटखा"।यश ने लड़की से कहा "छी! तुम गुटखा खाती हो"।लड़की ने कहा " कभी कभी खाती हूं"। फिर दोनो बात करते करते परीक्षा केंद्र तक पहुंच गए। यश ने अपने दोस्त को "गुड लक " बोला और फिर वहां से चल दिया। यश किसी के बारे में भी नही सोच रहा था। इस समय उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात चल रही थी की आत्महत्या करना हैं। हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी। बारिश से बचने के लिए वो एक प्रतीक्षालय में आश्रय लेता है। वहां पर कुछ अविवाहक भी थे जो अपने बच्चो को परीक्षा केंद्र तक छोड़ने आए थे। यश पूरी तरह से हरा हुआ निराश होकर प्रतीक्षालय में जाकर बैठ गया। उसी समय बाइक से एक लड़का आता है और बारिश से बचने के लिए प्रतीक्षालय में जाकर यश के सामने बैठ जाता है। थोड़ी देर के बाद वह लड़का गुटखा का पैकेट निकलता है। पैकेट से गुटखा निकलता है और मिलाने लगता है। यह देख कर दांए तरफ बैठे एक लड़का थोड़ी गुटखा मांगते हुए अपना हाथ बढ़ाता है। उस लड़के (जिसके पास गुटखा थी)ने थोड़ी गुटखा उसे (दाएं तरफ बैठे हुए लड़के को )दिया । फिर वो खाने वाला था। फिर उसकी नजर यश पर पड़ी । उसने यश को भी गुटखा ऑफर किया।यश का हाथ स्वत: आगे बढ़ा।यश ने गुटखा लिया और खा लिया। खाने के बाद उसे घुटन सी महसूस होने लगी। सांस लेने में परेशानी होने लगी । वह उठ खड़ा हुआ । कुछ देर के लिए मानो जैसे दिमाग काम नही कर रहा था। फिर हल्का सा नासा चढ़ा। और यश सारी चिंताओं को भूल गया। मन हल्का हल्का सा लगने लगा। यश ने आत्महत्या का इरादा बदल दिया और तय किया की जब भी टेंशन होगी गुटखा खा लिया करेगा। सेना में भर्ती होने के लिए एस आई की परीक्षा में बैठा। उसने इस परीक्षा में सफलता हासिल किया। उसका आत्मविश्वास बढ़ा। लेकिन शारीरिक योग्यता की परीक्षा में असफल रहा । फिर उसने प्राथमिक शिक्षक नियोग परीक्षा पास किया। फिर साक्षात्कार में असफल हो गया। इसके बाद वह एस एस सी की परीक्षा जो उसका मूल उद्देश्य था उसपर बैठा। उसमे भी वह पास हो गया । २०१० में उसने एस एस सी की परीक्षा पास किया। २०१० में जिस एस एस सी की परीक्षा उसने पास किया उस परीक्षा के दिन की घटना रोचक है। हुआ यूं की यश अपने घर से ८ किलोमीटर दूर एक छोटी से शहर बानरहाट में ट्यूशन पढ़ाता करता था। वहा पर मानेशर भैया से उसकी अच्छी दोस्ती हो गई थी। मानेशार को भी परीक्षा में बैठना था। परीक्षा का केंद्र अलीपुर में था । बानरहाट से अलीपुर की दूरी २ घंटा का था। मानेसर और यश दोनो ने मिल कर एक बोलेरो रिजर्व किया था अलीपुर जाने के लिए। बोलेरों में दस से बारह लोगो की जगह थी। यश और मानेसर भैया के दोस्तों ने भी उनके साथ जाने की इच्छा जताई। तय हुआ की वेलॉग ८ बजे बानरहाट से रवाना होंगे तो ठीक १० बजे से पहले अलीपुर पहुंच जायेंगे। यश का परीक्षा १० बजे से था और अन्य सभी लोगो का परीक्षा दोपहर १२ बजे से था। सुबह ८ बजे तो यश पहुंच गया । लेकिन यश के अन्य दोस्त ८ बजे गाड़ी तक नही पहुंच पाए। यश को चिंता होने लगी की वह समय से परीक्षा केंद्र तक पहुंच सकेगा की नही। लेकिन मानेसर ने यश को बिस्वास दिलाया की वे लोग १० बजे तक परीक्षा केंद्र तक पहुंच जायेंगे। जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ रही थी यश की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।सभी लोग ८:३० बजे गाड़ी तक पहुंचे । कुछ लोगो को पता नही था की यश का परीक्षा १०बजे सुरु होगा। सभी को यश को लेकर टेंशन हो गया। २ घंटे के रास्ते को अब डेढ़ घंटे में तय करना था। ड्राइवर ने यश को भरोसा दिलाया की वह चिंता न करे। यश ने इस परीक्षा के लिए बहुत तैयारी की थी और उसे बिस्वास था की इस बार वह जरूर पास करेगा। गाड़ी ८:३० बजे निकली । तेज रफ्तार में गाड़ी जा रही थी। सभी को यकीन होने लगा की अगर इसी रफ्तार से गाड़ी जायेगी तो समय से गंताब्य स्थान तक पहुंच जाएगी। उसी समय एक मुसीबत खड़ी हो गई। एक लड़की को बोमिटिंग सुरु हो गई। बोमिटिं से उसकी हालत खराब हो रही थी। फिर गाड़ी साइड में रोकना पड़ा । लड़की ने गाड़ी से उतर कर बोमिटिंग किया , पानी पिया और अपना माथा धोया। टाइम वेस्ट हो रहा था और यश की चिंता से हालत खराब हो रही थी। अब फिर से सबको टेंशन होने लगी। गाड़ी फिर से तेज रफ्तार से चलने लगी । १० किलोमीटर के बाद उस लड़की ने फिर से बोमिटिंग करना सुरु कर दिया। उसके बोमिटिंग को देखकर यश बहुत चिंतित हो रहा था क्योंकि उसका टाइम वेस्ट हो रहा था। गाड़ी को फिर रुकना पड़ा । फिर उस लड़की ने पानी पी कर कुछ देर आराम किया । और गाड़ी फिर से निकल पड़ी। अब सबको लगा की इस बार बोमिटिंग नही होगी । लेकिन उस लड़की का बोमिटिंग कहा रुकने वाला था। यश को इतना चिंता हो गया की अब उसने किसी से बात करना भी बंद कर दिया। मानेसर भैया ने लड़की को प्लास्टिक दिया और कहा की अब जितना भी बोमिटिंग करना है इसी में करना अब गाड़ी नही रुकेगी। मानेसर भैया ने ड्राइवर से कहा की वो गाड़ी तेज चलाए। इतनी देर हो चुकी थी की यश ने अब घड़ी देखना ही छोड़ दिया। फिर भी ड्राइवर ने ठीक दस बजे परीक्षा केंद्र तक पहुंचा दिया। लेकिन यहां भी मुसीबत रुकने का नाम नहीं ले रही थी। वे लोग गलत केंद्र पर पहुंचे थे। नाम में कन्फ्यूजन होने की वजह से वे लोग गलत परीक्षा केंद्र पर पहुंचे थे। यश का परीक्षा केंद्र का नाम था "सुनीति बाला सदर हाई स्कूल "। लेकिन वे लोग पहुंचे थे "बाला सदर हाई स्कूल" में ।यश की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाना बहुत मुस्कील था। यश ने मानेसर भैया की ओर देखा । मानेसर भैया ने वादा किया था की वहा समय से यश को परीक्षा केंद्र तक पहुंचा देगा । सभी को लग रहा था की अब यश की परीक्षा तो गया। यश के मुख से कुछ भी शब्द नही निकल रहे थे। मानेसर भैया ने उस छेत्र के एक लड़के से पूछा की "सुनीति बाला सदर स्कूल "कितना दूर है। उस लड़के ने कहा " ज्यादा दूर नही है " और पता बताया । मानेसर भैया थोड़ा भी रिस्क नहीं लेना चाहता था। उसने उस लड़के से बिनती किया की वो गाड़ी में बैठे और उस स्कूल तक छोड़ दे। वह लड़का राजी हो गया। फिर उस परीक्षा केंद्र तक पहुंचते पहुंचते दस मिनट और लग गए। इस तरह यश दस मिनट बाद परीक्षा केंद्र में पहुंचा। यश गाड़ी से और बिना किसी से बात किए परीक्षा केंद्र के गेट के अंदर चला गया। गेट के सामने एक इन विजिलेटर खड़ा हुआ था। उसने यश से रोल नंबर पूछा और यश का रूम नंबर बताया । यश सीधे रूम में चला गया । अंदर एक लेडी इंविजिलेटर थी। उसने यश को देखते ही अंदर आने की अनुमति दी और कहा "ये परीक्षा है या मजाक ,इतना लेट आने से होगा, आज कल के बच्चे भी न समय की अहमियत नहीं समझते"। वो बोले ही जा रही थी । यश ने उनके बातों को इग्नोर किया। उसके पास सिर्फ सात या आठ मिनट थे। इतने में उसे २० नंबर का सामान्य ज्ञान का उत्तर देना था। उसके बाद उसे मुख्य विषय का प्रश्न मिलता। यश इससे पहले दो बार परीक्षा दे चुका था। इसीलिए उसे निर्देश पढ़ने की जरूरत नहीं थी। इंविजिलेटर उसे समझाने की कोशिश कर रही थी । पर यश को ओ एम आर शीट भरते देख चुप हो गई। यश ने २० मिनट का काम ८ मिनट में ही कर दिया। फिर उसको मुख्य प्रश्न मिले। उसे भी उसने १० मिनट पहले खतम कर दिया । बाकी के लोग लिख ही रहे थे। यश ने इंविजिलेटर से शॉर्ट ब्रेक मांगा और पेशाबागार में जाकर अपने दोस्तों को मैसेज किया " पेपर फिनिश्ड"। तो ये था यश की वो यादगार परीक्षा जिसको उसने पास किया था। एक महीने के बाद जब यश ने रिजल्ट देखा तो उसको अपने आंखो पर यकीन नही हो रहा था । वह पास हो चुका था। उसके खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। उसने एस एस सी पास करने का सपना देखा था और वो आज सच हो गया। उसे लग रहा था की वह कहां जाए और किसे बताए की वो कितना खुस है। पर अभी इंटरव्यू बाकी था इसीलिए वह किसी को नहीं बता सका। इंटरव्यू का कॉल आया । वह इंटरव्यू देने गया । इंटरव्यू के एक रात पहले उसके मन में नकारात्मक विचार उठ रहे थे। वह सोच रहा था की अगर इस बार वह सेलेक्ट नही होता है तो वह कोशिश करना छोड़ देगा और बाहर कमाने चला जायेगा। दूसरे दिन इंटरव्यू अटेंड किया। इंटरव्यू में पूछे गए सवालों का यश ने ठीक ठीक जवाब नही दिया था। यश को लग रहा था की इस बार भी वो सेलेक्ट नही होगा। एक महीने के बाद जब यश ने रिजल्ट देखा तो वह पास हो चुका था। उसने कर दिखाया । उसका पैनल में नाम आ चुका था। जिंदगी का यह जंग चाय श्रमिक के बेटे ने जीत लिया। नियुक्ति पत्र आने में और तीन महीने लग गए । अंत में चाय श्रमिक का बेटा हाई स्कूल का शिक्षक बन ही गया । दोस्तों ये कहानी है डूअर्स में रहने वाले एक लड़के की । उसने एक छोटा सा सपना देखा था। लेकिन उसे पूरा करने के लिए उसे एडी चोटी का जोर लगाना पड़ा। कहानी(चाय श्रमिक का बेटा_२) (जुदाई)<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2311119752115696" crossorigin="anonymous"></script>

प्रेम चंद रविदास

12/14/20220 min read

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