Chai sramik ka beta2(judai)

नमस्कार दोस्तों ! २०२३ आप के लिए सुख समृद्धि और ढेर सारा प्यार लेकर आए। इसी मनोकामना के साथ सुरु करते है आज एक नई कहानी जो की "चाय श्रमिक का बेटा" का सीक्वल है। अगर आपलोगो ने" चाय श्रमिक का बेटा _१" नही पढ़ा हो तो जरूर पढ लीजिएगा और मेरे ब्लॉग को सब्सक्राइब जरूर कर लीजिएगा। तो चलिए शुरू करते है आज की कहानी । यश को अपने गांव के ही एक स्कूल में नियुक्ति मिलती है। यश का एक शिक्षक बनने का सपना पूरा हो जाता है। लेकिन यश को एक बीमारी ने परेशान कर रखा था। वह जब भी खाना खाता तो खाना उसके गले में अटक जाती थी। वह पानी भी पिता था तो पानी भी गले में फंस जाता था। उसके एक दोस्त ने बताया था की गले में खाना फसने से सांस लेने में दिक्कत होती है और इससे इंसान की मौत भी हो सकती है। यह बात यश के दिमाग में बैठ गईं थी। वह एक बड़े अस्पताल में जाता है और गले के डॉक्टर को दिखाता है। ठीक से जांच पड़ताल करने के बाद डॉक्टर ने कहा की पैनिक अटैक हुआ है। उसने साइकियाट्रिस्ट को दिखाने की सलाह दी। यश ने साइकियाट्रिस्ट को भी दिखाया । साइकियाट्रिस्ट के बातों से यश को संतुष्टि नहीं मिली । लेकिन एक भैया जो उसके साथ गया था उसने कहा की यश तुम चिंता मत करो इसी दवाई से ठीक हो जाओगे। वह यश को अपने घर ले गया और कहा " पैनिक अटैक कोई बीमारी नहीं है यह अपने आप ठीक हो जायेगा , दवाई भी लो और यह पेग भी लगाओ , इससे नींद बहुत अच्छी आयेगी"। यश ने उस दिन दो पैग लगाया और सो गया । सुबह जब आंख खुली तो वह खुद को बहुत ही अच्छा महसूस कर रहा था। यश को एक अच्छी नींद लिए हुए वर्षो बीत गए थे । देर रात तक जागना और पढ़ाई करना उसकी आदत बन गई थी । वह हर दिन तीन से चार घंटा ही सोता था। लेकिन उस दिन उसे अच्छी नींद लेने के कारण बहुत सुकून महसूस हो रहा था। उसे लगा की अल्कोहल बनाने वाले ने भी कुछ सोच समझ कर ही अल्कोहल बनाई होगी। उस दिन के बाद वो रोजाना एक दो पैग लगाने लगा और अच्छी नींद भी लेने लगा । धीरे धीरे उसका सेहत ठीक हो रहा था । गला में खाना फसना भी कम हो गया। अब उसका खाना पीना और सोना बिलकुल टाइम से होने लगा । उसको अब किसी बात की चिंता नहीं थी। समाज में भी उनकी और उनके परिवार की इज्जत बढ़ी । अब लोग उसे पहचानने लगे और उसके घर वालो को भी महत्व देने लगे । रिश्तेदार भी करीब आने लगे । नए नए दोस्त भी बनने लगे । रोजाना दोस्तो के साथ शाम को घूमने जाना और मस्ती करना तो जैसे आम बात हो गई थी। वह बाइक से कई बार लॉग ड्राइव में गया । अब उसे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी । इसके बाद उसने अपनी बहन को सादी कराना चाहा । लेकिन उसकी बहन सादी के लिए राजी नहीं थी । उसके बहन ने कहा " भैया आप मुझे ससुराल भेजकर यहां अच्छा से रहना चाहते है , पहले आप सादी कीजिए ,आपका सादी देखना चाहती हूं , बारात में एन्जॉय करना चाहती हूं ,भाबी के साथ समय बिताना चाहती हूं , उसके बाद मैं सादी करूंगी"। यश ने सोचा " चलो मैं ही पहले सादी कर लेता हूं , मां बाप के सिर से एक बोझ तो हल्का हो जायेगा और बहन का इच्छा भी पूरी हो जायेगी"। यश ने सादी करने का फैसला किया । उस समय यश की उम्र २७ साल था। लेकिन यह समस्या थी की यश के लिए लड़की देखने कोन जाता । यश के पिताजी तो ठहरे शराबी और उसके मां बाहरी दुनिया से बेखबर रहती थी । यश के बारे में सोचने वाला कोई नहीं था ।यश लव मैरिज भी कर सकता था लेकिन यश यह बात समझ चुका था की अब समाज में उसकी इज्जत है और समाज एक शिक्षक से यह उम्मीद नहीं रखता। नौकरी के बाद यश और उसके फूफाजी का रिश्ता बहुत अच्छा हो गया था। यश और उसके फूफाजी दोस्त जैसे रहा करते थे । यश ने अपने फूफाजी से कहा की वो सादी करना चाहता है । यश अपने फूफाजी के साथ खुद लड़की देखने जाता है । लड़की पसंद करता है और सगाई भी हो जाती है। लड़की वाले गरीब थे तो यश ने दहेज का कोई डिमांड नही रखा । इससे यश के घर वाले नाराज हो गए । यश के घरवाले यह समझने लगे की यश को लड़की बहुत पसंद आ गया है इसीलिए वह दहेज नहीं ले रहा है। लेकिन यश एक शिक्षित लड़का था और दहेज प्रथा के दुष्परिणाम के बारे में जानता था। वह दहेज प्रथा के खिलाप था । इसीलिए उसने दहेज की मांग नही की । लड़की के घर वाले इतने गरीब थे की बारात बुलाकर सादी भी नही करवा सकते थे । इसीलिए यश ने मंदिर सादी के बात को मान लिया । इस बात से यश के घरवाले खाफी नाराज थे। उनका मनाना था की सादी विवाह का मामले तो घर के बुजुर्ग ठीक करते है तो यश सब कुछ खुद ही निर्णय लेने वाला होता कोन है। धीरे धीरे इस बात को लेकर यश के मां , भाई , बहन और अन्य रिस्तेदारो में नाराजगी बढ़ रही थी । लेकिन वे यश से कुछ कह भी नही सकते थे । क्योंकि जब यश नौकरी के लिए अकेले संघर्ष कर रहा था तब न कोई रिश्तेदार थे और न ही मां बाप ने साथ दिया था । जब यश के घर के हालात खराब थे तो यश को हर एक जिम्मेदारी उठना पड़ा था और खुद को ही फैसला लेना पड़ा था । पिछले कई सालो से यश अकेले ही फैसला लेता आ रहा था । इसीलिए यश ने सादी के मामले में भी किसी से राय लेना जरूरी नहीं समझा । लेकिन यश के घर वाले अब बड़ा होने का फर्ज निभाना चाहते थे। यश के बुआ और फूफाजी का सोचना था की यश एक नौकरी करने वाला लड़का है और सादी में दहेज न ले यह शोभा नही देता । यश के बुआ ने यश के मां बाप और भाई बहन को बहकना शुरू कर दिया । यश के मां और भाई बहन को लगने लगा की यश अभी से लड़की की बात इतना सुनता है तो सादी के बाद किया करेगा । यश के मां के मन में इर्ष्या पैदा होने लगी । धीरे धीरे यश के भाई और बहन भी यश को लेकर गलत धारणा बनाने लगे । जैसे जैसे सादी के दिन नजदीक आने लगा यश के परिवार वालों में यश के प्रति गुस्सा बढ़ने लगा। सादी का सारा खर्चा का बोझ यश के सिर पर ही था। देखते देखते सादी के दिन भी सामने आ गया । यश को दूसरे दिन बारात लेकर मंदिर तक जाना था । सभी मेहमान आ चुके थे । दूसरे दिन सभी खुद तैयार होने लगे । सभी सादी में बारात जाने को लेकर काफी उत्साहित थे। लेकिन यश जो एक दूल्हा था उसे तैयार होने में मदद करने वाला कोई नहीं था । यश को बहुत बुरा भी लग रहा था लेकिन किया करता । फिर यश ने खुद को समझाया और दुलहा का ड्रेस खुद ही निकाला और पहन लिया । उन्होंने एक दिन पहले ही फेशियल करवाया था। जितना जानता था उन्होंने मेक अप किया और बारात जाने के लिए तैयार हो गया।उसे ऐसा लग रहा था जैसे की वह कही घूमने जा रहा है। गाडियां भी आ गई थी और सारे रिश्तेदार और दोस्त भी । सादी भी यश का और सादी के सारी जिम्मेदारी भी यश के सिर पर । यश खुद को अकेला महसूस कर रहा था । फिर भी सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ा । बराता निकलने के पहले एक रस्म हो रही थी जिसमे यश ने देखा कि यश के मां , बहन और बुआ सब रोते रोते रस्म कर रहे थे। यश को बड़ा आश्चर्य हुआ की बेटे के सादी में क्यों सब रो रहे हैं। फिर उसने इन सब बातों को नजर अंदाज करते हुए आगे बढ़ना जरूरी समझा । बारात निकली सभी बारात लेकर मंदिर पहुंचे । जब मंदिर में सादी हो रही थी उस समय लड़की के घरवाले सभी मंदिर में ही उपस्थित थे । लेकिन यश देखता है की उनके अपने लोग वहा बहुत कम संख्या में है । वैसे तो बरात गाड़ियों में भर भर के गए थे लेकिन सादी के वक्त सभी घूमने में व्यस्त थे। यश को लग रहा था की उनके परिवार वाले भी उनके साथ होते तो कितना अच्छा होता। विवाह संपन्न होते ही सभी का आशीर्वाद लेना था । लड़की वालों का सभी परिजन सामने थे । लड़की अपने मां बाप का आशीर्वाद ले रही थी । साथ में यश भी उनका आशीर्वाद ले रहा था । मन ही मन यश अपने पापा को तलाश रहा था क्योंकि वह सबसे पहले अपने पापा का ही आशीर्वाद लेना चाहता था । लेकिन उसका पापा कहीं दिखाई नहीं दे रहा था । यश की मां नही आई थी सादी में । यश के बुआ और फूफा जी तो थे लेकिन यश सादी के बाद सबसे पहले अपने पापा का आशीर्वाद लेना चाहता था । लेकिन यश के पापा नही मिले । यश को अब धीरे धीरे गुस्सा आ रहा था । कम से कम सादी के दिन तो आशीर्वाद देने के लिए उसके पापा को साथ रहना चाहिए था। उसके अपने लोगो को भी तो इस बात का खयाल रखना चाहिए था की यश का पापा को कहीं जाने न दिया जाए ,सादी के बाद आशीर्वाद देने की जरूरत पड़ सकती है। लेकिन सभी अपने मस्ती में थे । यश को इतना गुस्सा लगा की उसने किसी से भी आशीर्वाद नही लिया । इसके बाद खाना के लिए एक होटल में ब्यावस्ता किया गया था । खाना भी खराब हो गया था । यश ने दहेज में तो कुछ मांगा नही था लेकिन ससुर जी से एक गुजारिश की थी की सबके लिए खाना अच्छा होना चाहिए। ससुरजी ने भरोसा दिलाया था की खाना अच्छे से खिलाएंगे । खाना खराब होने के कारण होटल में ही झगड़ा शुरू हो गया । यश की बीमारी भी थोड़ी बढ़ चुकी थी ।समय से खाना खाना बहुत जरूरी था । सुबह से भूखा था उसे बेचैनी हो रही थी । सादी तो हो गया लेकिन दूल्हा दुल्हन को गाड़ी में छोड़ कर सभी अपने खाने के बारे में सोच रहे थे । बहुत देर तक यश दुलहन के साथ बैठा रहा और जब गुस्सा बर्दास्त के बाहर हो गया तो यश ने अपने फूफाजी से कहा " हमलोगों को खाना खिलाने कब ले जायेंगे ? हमलोग किया ऐसे ही बैठे रहेंगे, आपलोग नही बोलिएगा तो हम कैसे जायेंगे ,करने किया आए है आपलॉग हमको तो समझ में नहीं आ रहा है"। फिर किया था फूफाजी को बहुत बुरा लगा । इसलिए नही की उनलोगी को अपनी लापरवाही पर सरमिंदा होना पड़ा बल्कि इसलिए कि उसके इगो को ठेस पहुंची । उस समय तो फूफा जी ने कुछ नही बोला लेकिन अपने गुस्से को सीने में दबा लिया । खाना पीना खतम हुआ और बाराती दुल्हन लेकर घर आ गए। यश बहुत गुस्से में था । उसने किसी का भी आशीर्वाद नही लिया। घर में आकर झगड़ा होने लगा ।यश ने घर के बड़ो से कहा " अगर मैं किसी दूसरे जात की लड़की को भगाकर सादी करता तो आप सभी मेरे चरित्र पर सवाल उठाते, लेकिन आज मैं एक सुसंगत बिबह कर रहा हु तो किया आपलोगो को साथ देने की हर संभव प्रयास नहीं करना चाहिए, कितने लापरवाह है आपलोग, आशीर्वाद के समय आप सब कहा गए थे ,मेरे पापा कहा गया था "। सब कुछ देर के लिए चुप रहे उसके बाद यश के बुआ ने गुस्से में कहा" हां ठीक है आज भर बर्दास्त कर लो"। यश अपनी बुआ की बात करने का तरीका देखकर और कुछ कहना जरूरी नहीं समझा । उसके बाद यश और उसके पत्नी को कमरे में अकेले छोड़ दिया गया । ऐसा लग रहा था जैसे की तुमने सादी की है तो अब तुम ही अपने पत्नी को संभालो । यश अपने दोस्तों के पास जाना चाहता था लेकिन देखा की यश के पत्नी को कंपनी देने वाला कोई नहीं है । यश को पत्नी कम और जिम्मेदारी ज्यादा महसूस हो रहा था । दूसरे दिन प्रीतिभोज था । यश ने सभी को एक एक जिम्मेदारी दी और अच्छे से निभाने के लिए दबाव डाला । उसने सभी के काबिलियत पर सवाल उठाया । और छोटे बड़े सभी के साथ सख़्ती से पेश आया । उसे संदेह हो गया था की उसके परिवार वाले प्रीतिभोज सफल बनाने से चूक जायेंगे । सभी ने उसके बातों को चुनौती के रूप में लिया और पूरे लगन और मेहनत से काम किया । सादी में खान पान और व्यवस्था को लेकर सभी मेहमान खुस थे । सभी ने प्रीतिभोज की बहुत प्रशंसा की । सादी धूम धाम से संपन हुआ । लेकिन जितने भी अपने लोग थे सभी यश से नाराज हो गए । दूसरे दिन सभी मेहमान अपने अपने घर चले गए । और सुबह दस बजे शुरू होता है यश और अपने मां के बीच एक झगड़ा। दोनो के बीच जोरदार बहस होने लगी। यश के मां के पास यश को गलती ठहराने के लिए कोई खास वजह नही थी। उसको समस्या थी तो अपने बहु से । एक समय था जब यश की मां अपने पति के अत्याचार से परेशान थी ,घर में खाने के लिए नही होता था, हमेशा अपने पति की बुराई किया करती थी, समाज में न कोई इज्जत था और न कोई पहचान, बिलकुल लाचार और बेबस थी ,केवल घर में बैठकर चिंता करने के अलावा दूसरा कोई काम नही था। लेकिन आज उनके बातों से लग रहा था जैसे को वो एक स्वाभिमानी औरत है। वह यह बताना चाहती थी आज उसका बेटा जो कुछ भी है सिर्फ उसकी वजह से है ।यश अपने मां का यह रूप देखकर हैरान हो गया । बहुत दिनों से उसकी मां अपने मन में यश के प्रति क्रोध को पालती जा रही थी । वह शेरनी की तरह गरजते हुए यश पर बरसने लगी । यश के दिमाग में यह बात चल रही थी की जब यश जीवन से संघर्ष करते करते थक चुका था और आत्महत्या करने वाला था तब उसकी मां को यश के तकलीफ का अंदाजा नही था और अब जब वो अपना घर बसाने जा रहा है तो उसके खुसियो के बारे में न सोच कर अपने इगो के बारे में सोच रही है।उनके मां के बातों से यह साफ पता चल रहा था की उनको अपने बहु से नफरत है। यश जब संघर्ष कर रहा था उस समय यश की मां को घर में बैठ कर चिंता करना और अपनों तकलीफ दूसरो को बताने के सिवा कोई काम नही था । न उनका कोई इज्जत था और न कोई अपने। लेकिन बेटा के सारे दुश्मन अब यश के मां की हमदर्द बन गए। यश का ससुराल वालो से दहेज न लेना ,मंदिर में सादी करना ,सादी का हर फैसला खुद ही लेना और सादी धूम धाम से संपन होना यश के लिए बहुत सारी परेशानियों को न्यौता देने के बराबर था। यश के मां बाप , भाई और बहन सभी यश के पत्नी से जलने लगे। यश के रिश्तेदार सभी यश को दुश्मन समझने लगे। यश का सादी धूम धाम से संपन हुआ इससे बहुत से लोगो को परेशानी होने लगी क्योंकि वो अपने घर में इतने धूम धाम से सादी नही करा सके थे। कुछ लोग तो यह समझते थे की गांव में उनके जैसा सादी कोई करा ही नही सकता उनके इगो को ठेस पहुंची । अब यश फिर से अकेला हो गया था ।उसके ऊपर सादी के कर्जा का बोझ भी था। सभी उसके साथ अजीब तरीका से पेश आने लगे। यश के घर का सारा काम अब यश की पत्नी संभालने लगी । यश के मां काम न करे यह शोभा देता है लेकिन यश के बहन भी टीवी के सामने बैठे रहती और यश की पत्नी खाना पहुंचा देती थी। यश के मां जो हमेशा अपनी पति की बुराई किया करती थी अब उसका पक्ष लेने लगी । यश के भाई और बहन कभी मिल के नही रहते थे अब मिल के रहने लगे। यश जब काम पे चला जाता था तो उनको चिंता होने लगती थी कि उसकी पत्नी अकेले किया कर रही होगी क्योंकि कोई उससे बात नही करता था । यश के पिताजी नाश्ता करके पीने चला जाता था ,उसका भाई अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता था ,उसकी बहन भी घर पर नहीं रहती थी और उसकी मां जो अब तक घर में ही बैठकर चिंता करती रहती थी अब बाहर भी घूमने जाने लगी । यश की पत्नी घर में अकेली रहती थी । नई नवेली दुल्हन थी किसी से जान पहचान भी नही था तो किया करती घर के अंदर अकेले ही पड़ी रहती थी। यश के सास ससुर भी आते तो यश को अपने रूम में ही सुलाना पड़ता था । यश के मां बाप यश के सास ससुर से ठीक से बात भी नहीं करते थे। ऐसा लग रहा था जैसे की यश ने सादी किया है तो सब कुछ वही संभाले ,अपने सास ससुर का मेहमान नवाजी खुद ही करे। यश के मन में जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ता ही जा रहा था और धीरे धीरे उसकी बीमारी वापस रंग ला रही थी । यश को अब गला में खाना और पानी फसना फिर शुरू हो गया । यश को सांस लेने में दिक्कत होने लगी और पेट में गैस बनना भी शुरू हो गया । पहले के ही तरह यश अब देर रात तक जागने लगा । अब तो शराब भी असर करना बंद कर दिया था । शराब पीने से भी नींद नहीं आती थी । हर वक्त डर लगा रहता था की खाना खाते समय और पानी पीते समय कही खाना गले में न फंस जाए और यश की मौत न हो जाए। यश को कुछ हो गया तो उसका पत्नी का किया होगा इस बात की भी चिंता यश को होने लगी । गांव में सभी यश के बारे में तरह तरह के बाते करने लगे । लोग कहने लगे की यश सादी करके बदल गया है और अपनी पत्नी की बात सुनता है । वो अपना मां बाप और भाई बहन की चिंता नहीं करता । यश के रिश्तेदार भी आते तो जले में नमक छिड़कने का काम करते थे। यश बहुत परेशान और बहुत बीमार हो चुका था। वो सभी को बताता की वह बहुत बीमार है लेकिन कोई उसके बीमारी को गंभीरता से नहीं लेता था। यश जब बहुत बीमार पड़ गया तो फिर से डॉक्टर दिखाने गया । इस बार उसने पेट के डॉक्टर (gastrontologist) को दिखाया । उसे लगा की पेट में गैस बनने के कारण सायाद सांस लेने में दिक्कत हो रही है और खाना गले में फंस रहा है। उसने पेट के डॉक्टर से इलाज करवाया । पांच दिनों तक हॉस्पिटल में भर्ती भी था लेकिन कोई रिश्तेदार या कोई अपने यश को देखने तक नही आए। यश के पत्नी ने यश का पूरा साथ दिया । यश हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर घर आता है । उसके मां बाप ,भाई बहन किसी ने भी यश की खैरियत तक नही पूछा। कुछ महीना तक यश ठीक था और फिर वही बीमारी लौट आया । घर में हर रोज झगड़ा होने लगा । छोटी छोटी बातों को लेकर बहस शुरु हो जाता था । एक दिन यश और उसके भाई के बीच जोरदार झगड़ा शुरू हो गया । यश को अपने भाई का यह रूप देख बड़ी हैरानी हुई । यश ने जिस भाई को बुरे समय में साथ दिया था उसको मौत से बचा कर लाया था वह भाई आज उसे आंख दिखाकर बात कर रहा है। उसने अपने भाई से कहा "जब तुम जिंदगी और मौत के बीच लड़ रहे थे, उस समय मैने तुम्हारा साथ दिया, तुम्हे मौत से बचाकर लाया और आज तुम मुझसे ही इतना गर्मी दिखा रहे हो "।उसके भाई ने कहा " तो बचाकर क्यों लाया ,मरने ही दिया होता तो अच्छा होता "। यह बात सुन कर यश के आंखो में पानी भर गया और चुपचाप वहां से चला गया। कुछ दिनों बाद यश ने देखा की यश के मां बाप और भाई बहन अलग खाना बनाने लगे । यश को यह देख कर रहा नही गया । यश को समझ नही आ रहा था की आखिर ये किया हो रहा है । वह अपने मां को गलत बोल भी नहीं सकता था । वह अपने पत्नी कि भी कोई गलती नही देख रहा था । फिर भी उसे लगा की सायद कहीं न कहीं उसकी ही गलती है इसीलिए तो उसकी मां बाप अलग खाना बनाने लगे । उसने अपनी मां का पैर पकड़ लिया और माफी मांगी की कहीं जाने अंजाने सयाद उससे ही गलती हो गई हो । उसने अपने भाई और बहन से भी माफी मांगी । और फिर कहा की अलग खाना बनाने की जरूरत नहीं है साथ में रहते है और एक ही जगह खाना बनाते है। उसने अपनी मां को समझाया और फिर एक साथ खाना बनाने लगे। इधर यश की बीमारी बढ़ती ही जा रही थी । हर रोज उसे डर डर कर जीना पड़ रहा था । उसे लग रहा था की सायद अचानक उनकी मौत हो जायेगी। जब भी किसी की मौत का खबर सुनता वह बहुत घबरा जाता था। वह लगातार कई महीनो से दवाई ले रहा था लेकिन उसकी बीमारी ठीक ही नही हो रही थी। उसने डॉक्टर से पूछा की आखिर उसको हुआ किया है अंकुर इतना दवाई खाने के बाद भी वह ठीक के नही हो राह है। डॉक्टर ने कहा एंजाइटी है। यह बात यश को हजम नही हुई । उसने डॉक्टर से फिर पूछा "एंजाइटी से पेट में गैस बनने का किया संबंध है?" डॉक्टर ने जवाब दिया " आप को बहुत लंबे समय तक दवाई खानी पड़ेगी आप जिस भी डॉक्टर से दिखा लो? डॉक्टर के बातों में कोई लॉजिक नही था। डॉक्टर का डिग्री और रैंक देखकर यश को बिस्वास था की वह डॉक्टर यश का इलाज कर सकता है। लेकिन एक सालो तक ट्रीटमेंट करवाने के बाद भी जब यश का समस्या का समाधान नहीं हुआ तो उसे लगा की डॉक्टर सही नही है। वह अपने ट्रीटमेंट के लिए बंगलोर चला गया । बंगलोर के विक्टोरिया हॉस्पिटल में उसने अपना इलाज करवाया । सबसे पहले उसे जनरल फिजिशियन ने देखा उसके पास और भी डिग्री थी। यश ने अपनी पूरी मेडिकल हिस्ट्री बताया । उसने बताया की उसे गैस्ट्रिक का प्रोब्लेम है । खाना खाता है तो गले में फंस जाता है। डकारे आती रहती है और सांस लेने में भी दिक्कत होती है । वो बहुत नर्वस लग रहा था और अपने बीमारी के लक्षणों को ठीक से बता भी नही पा रहा था। उसने अपनी सारी लक्षणों को एक पेपर में लिख कर ले गया था। डॉक्टर ने ध्यान से उसके हाव भाव को देखा । उसे कुछ अन्य बीमारी होने का संदेह हुआ । उसने कहा " सेकंड फ्लोर ६ नंबर कमरा में एक डॉक्टर बैठता है वहां पर जाओ"। यश उस कमरे में जाता है और देखता है की वह तो मनोचिकित्सक (psychiatrist) विभाग है। वह फिर परेशान हो गया उसको तो पेट में समस्या है तो फिर डॉक्टर ने मनोचिकित्सक के पास क्यों भेजा । फिर भी उसने डॉक्टर को अपना समस्या बताया ।डॉक्टर को उसकी समस्या सुनकर कुछ अजीब लगा । फिर उस डॉक्टर ने यश को मनोचिकित्सक के एक समूह के पास ले गया। जांच पड़ताल करने के बाद, डॉक्टर ने कहा "ऐसी दवाई दूंगा कि आपकी सारी समस्या खत्म हो जाएगी"। फिर उसे पेट के डॉक्टर (gastriontologist) के पास भेजा गया । पेट के डॉक्टर ने भी एक दवाई लिखी ।दो दवाई लेकर यश घर आ गया यश ने दो तीन महीने तक दवाई खाई । बीमारी कुछ कम हुआ फिर वही दशा हो गई । यश का बीमारी ठीक होने का नाम ही नही ले रही थी। यश एक तरफ अपने बीमारी से परेशान था तो दूसरी ओर उसके घर के झगड़े से । वह दिन प्रतिदिन चिड़चिड़ा होता जा रहा था। एक दिन यश के पत्नी ने यश को बताया की उसकी बहन बाथरूम से निकलकर साबुन से हाथ नही धोती है। यश ने कभी इन बातो को ध्यान नही दिया था। दूसरे दिन यश ने देखा की यश का बहन सचमुच बाथरूम से निकल कर अपना बेडरूम की और चल दिया। यश को यश सोचकर बहुत गुस्सा आया की बिना साबुन से हाथ धोए ही चली गई और उसी हाथ से खाना भी बनाएगी। यश अपने बहन से बात नही करता था। उसने अपने मां को बुलाया और अपने बहन को सुनाते हुए कहा की इस तरह के बातों से उसे बहुत गुस्सा आता है आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए। उसके बहन ने इस बात को उल्टा ही समझा और वहां पर झगड़ा शुरू हो गया । उसकी मां तो हमेशा मौके के तलाश में रहती थी। वह भी इस झगड़े में कूद पड़ी। उसका भाई आया वह भी झगड़ने लगा। यश ने गुस्से में कहा "अभी मैं काम पे जा रहा हूं ,रात को में सबसे बात करूंगा , तुमलोगो को किया समस्या है मुझे साफ साफ बताना लेकिन मैं कुछ सवाल पूछूंगा उसका जवाब भी देना पड़ेगा"। इसके बाद यश शाम के चार बजे काम से लौट आता है। वह खाना खाता है और कुछ देर आराम करता है। उसने यह तय कर लिया की आज तो वह सभी से पूछेगा की आखिर किसे किया समस्या है। वह अपने भाई बहन मां बाप और पत्नी को एक साथ बिठाकर पूछेगा की किसको किस्से किया प्रोब्लेम है। वह शाम होने का इंतजार कर रहा था। शाम होती है और वह अपने मां के पास जाता है।वह देखता है की उसका भाई और बहन दोनो घर पर नहीं है। वह अपने मां से भाई और बहन के बारे में पूछता है। उसका मां चुप रहती है । बहुत पूछने पर बताती हैं की वह अपने बुआ के घर चली गई है। यह सुनते ही यश को बहुत गुस्सा आता है। वह अपने मां से कहता है " में सभी से बैठकर बात करना चाहता हु ,किसको किया समस्या है जानना चाहता हु, समस्या का समाधान करना चाहता हु तो आपलोग बैठ कर बात करना क्यूं नही चाहते,अगर आपलोगो से गलती नही हुई है तो डर किस बात का, वो क्यों चली गई और आपने उसे जाने क्यों दिया"। उसके मां ने कहा " मैने जाने नही दिया वो खुद गई है"। यश ने अपने बुआ को फोन लगाया और कहा " आपलोग सब कुछ जानते हुए भी क्यों ऐसा कर रहे हैं , आपने क्यों मेरे बहन को बुला लिया, आपसे तो मैं अब रिश्ता ही खतम कर दूंगा"। यश के मां ने यह सुनकर कहा " बड़ा आया रिश्ता खत्म करने वाला , तुम कोन होते हो रिश्ता खत्म करने वाले"। यश का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। उसने बाइक निकला और साम के ६ बजे अपने बहन को लाने निकल पड़ा। वह आज यह तय कर लिया था की वह सभी से पूछेगा ही की किसकी किया प्रोब्लेम है। कई लोगो ने यश को मना किया लेकिन यश ने एक न सुनी। उसने दो पैग लगाया और ४० किलोमीटर दूर अपने बहन को लाने गया । अपने बुआ और फूफाजी से झगड़ा किया और जबरदस्ती अपनी बहन को लेकर घर आ गया। रास्ते में बारिश भी सुरु हो गई थी। यश और उसके बहन भीगते भीगते घर पहुंचे। फिर यश ने सबको बिठाया और सबसे पहले अपने भाई से पूछा की उसकी किया समस्या है। यश यह जानने के लिए बहुत बेताब था की आंखिर उसके भाई की समस्या किया है। यश के भाई ने कहा " तुमने हमेशा से मुझे दुख दिया है , तुम अपने लिए फल या हॉर्लिक्स कुछ भी लाते थे मुझको खाने के लिए नही देते थे, और मैं कभी खुद से लेकर खा भी लेता तो आप हमेशा गुस्सा करते थे और कहते थे की मेरे फल को क्यों खाया"। यश अपने दिमाग में जोर डालता है की ऐसा उसने अपने भाई को कब कहा। उसे ऐसा तो कुछ याद ही नहीं आ रहा था। यश ने कहा " नही मैने ऐसा कभी नहीं कहा "। उसका भाई बहस करने लगता है की यश ने ऐसा कहा था। यश को ऐसा लग रहा था की वो पागल हो जायेगा। उसका भाई झूट पर झूट बोला जा रहा था और यश दिमाग में जोर डालता जा रहा था। अंत में यश को समझ आ गया की उसका भाई अब छोटा नही रहा और बहुत बदमाश हो गया है। उसके बाद वो अपनी बहन से पूछता है की बताओ अब तेरी प्रोब्लेम किया है। उसकी बहन चुपचाप रही और मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाली ।यश ने जब बहुत दबाव डाला तो उसके बहन ने सिर्फ इतना कहा " मुझे कुछ नही कहना "। यश को उस दिन इतना तो पता चला की वो गलत नही है बल्कि उसके मां , भाई और बहन ने ही बुराई का रास्ता अपना लिया है। उस रात यश देर तक जगा रहा और सोचता रहा। उसकी पत्नी ने उसे समझाया की ज्यादा चिंता न करे और सो जाए। कुछ दिनों के बाद उसके बहन ने भागकर एक लड़के से सादी कर ली। यश के सभी रिस्तेदारो को पता था की यश के बहन का किसी लड़के के साथ चक्कर चल रहा है और सभी ने उसके बहन को भागकर सादी करने में साथ दिया। जब लोगो ने उसके बहन से पूछा की उसने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया तो उसने सभी को यही जवाब दिया की उसका भैया ने घर में उसका जीना हराम कर रखा था इसीलिए मजबूरन उसे ऐसा कदम उठाना पड़ा। उधर यश के मां और भाई फिर से अलग हो गए। अब गांव में यश का जीना मुस्किल हो गया था। एक तो बीमारी से परेशान और दूसरा लोगों के ताने सुनना। यश के रिस्तेदारो का भी नौटंकी सिर चढ़ कर बोलने लगा।यश के लिए अब इस परिस्थिति को झेलना तलवार के धार पर चलने के बराबर था। यश ने अलग कहीं दूर जाकर रहने का फैसला कर लिया। यश ने अपने घर से १०किलोमीटर दूर एक गांव में किराए के मकान में रहने का मन बना लिया। इसके बाद यश अपने पत्नी को लेकर घर छोड़ कर चला गया । जिस दिन उसने घर छोड़ा उस दिन की एक घटना ने उसे पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया। सुबह दस बजे तक उसने और उसके पत्नी ने सारा सामान पैक कर लिया था। गाड़ी आ चुकी थी। सामान गाड़ी में लोड हो रही थी। यश के पापा और भाई घर पर नहीं थे। यश के मां को पता चल चुका था की यश और उसका पत्नी घर छोड़ कर जा रहे थे। यश का भाई थोड़ी देर में आता है। न ही यश के मां ने और न उसके भाई ने यश को रोकने की कोशिश की । यश सोच रहा था की उसने जाने का फैसला तो कर लिया लेकिन घर छोड़ते समय वह अपने जज्बातों को रोकेगा कैसे।जिस घर पर उसका बचपन बीता था उसी घर को वह छोड़ेगा कैसे। उसकी मां अंदर ही थी और उसे लग रहा था की यश अपने सभी सामने को लेकर जायेगा ।इसीलिए तो उसने शोकेस वागेरा खाली कर दिए। लेकिन यश को किसी भी चीज के प्रति कोई लालच नही था। सब कुछ तो बनाया हुआ उसी का था और खरीदा हुआ सामान भी। उसने तो सोचा था की वह जमीन खरीद कर अलग घर बनाएगा और गांव का सब कुछ उसके भाई का नाम कर देगा। लेकिन उसे इतना जल्दी अलग होना पड़ेगा उसने नही सोचा था। अब जाने का समय हो चुका था। यश ने सोचा की वह अपने मां का आशीर्वाद लेगा और चला जायेगा । लेकिन उसे यह बात परेशान कर रही थी की जब वो आशीर्वाद लेने अपने मां के पास जायेगा और उसका मां रोने लगेगी तो वो कैसे घर छोड़ कर जायेगा। फिर भी उसने हिम्मत जुटाया और तय कर लिया की चाहे जो भी हो वो अपना मां का पैर छूएगा और एक न सुनते हुए सीधे निकल जायेगा । यश अपनी पत्नी से कहता है " चलो मां का आशीर्वाद ले लेते है उसके बाद चलते है"।दोनो आशीर्वाद लेने के लिए आगे बढ़े। पत्नी आगे आगे जा रही थी और यश पीछे पीछे । यश अंदर ही अंदर कांप रहा था की अब किया होने वाला है। पहला कमरा का दरवाजा पार होता है फिर दूसरा कमरा का दरवाजा आता है । तीसरे कमरे पर राशोयीघर था। और यश की मां रसोईघर में थी।पत्नी रसोईघर के दरवाजे तक पहुंचती है। अपनी शास का आशीर्वाद लेती है। शास अपनी बहु को देखते ही गुस्से से लाल हो जाती है और कहती है " देखा तुम्हारा जैसा औरत को , इतना घमंड ,अपने शास ससुर से झुककर रहना नही चाहती इसीलिए तो जा रही है"।यश के मां को पता नही था की यश भी पीछे खड़ा है। यश का नजर भी उसकी मां पर नही पड़ी थी। यश की पत्नी रोते हुए पीछे मुड़ कर चली जाती है। यश आगे बढ़ता है दरवाजा के सामने पहुंचकर जो देखता है उसे अपने आंखो पर बिस्वास नही होता है। उसने तो सोचा था की बेटे का जुदाई एक मां को बर्दास्त नही होगा लेकिन यश की मां तो थाल में भात, दाल और सब्जी लेकर आराम से बैठकर बड़े चाव से खा रही थी।फिर भी यश ने अपनी मां का पैर छुआ।यश की मां मुंह में खाना चबाते हुए नफरत भरी नजरो से बेटे को देख रही थी। यश ने कुछ भी नही कहा और यह सोचते हुए घर छोड़ के चला गया की ऐसी परिस्थिति में एक मां के गले से चावल का निवाला उतरा कैसे ? दोस्तो ये कहानी यही पर खत्म होता है। ये एक सच्ची कहानी है। मेरे इस कहानी को सब्सक्राइब जरूर कर लीजिएगा और अपना महत्वपूर्ण टिप्पणी जरूर मेल कीजियेगा।और "चाय श्रमिक का बेटा _३" भी जल्द ब्लॉग पर आ जाएगा। धन्यबाद!कहानी(चाय श्रमिक का बेटा_२) (जुदाई)<script async 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प्रेम चंद रविदास

1/6/20230 min read

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